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Up Kiran, Digital Desk: हर साल की तरह इस बार भी 26 अगस्त 2025 को गणेश चतुर्थी का पावन पर्व मनाया जाएगा। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाने वाला यह उत्सव, विघ्नहर्ता भगवान गणेश के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। भक्त बप्पा को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के भोग लगाते हैं, जैसे मोदक, लड्डू, दूर्वा (घास) और फल। लेकिन एक ऐसी पवित्र चीज़ है जिसे गणेश जी की पूजा में भूलकर भी अर्पित नहीं किया जाता – वह है तुलसी।

आखिर क्यों वर्जित है गणेश जी की पूजा में तुलसी?

इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जो भगवान गणेश और तुलसी के बीच हुए श्राप के आदान-प्रदान से जुड़ी है।

कथा कुछ यूँ है:

एक बार की बात है, जब देवी तुलसी, जो भगवान विष्णु की परम भक्त थीं, अपनी विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ यात्रा पर निकली थीं। घूमते-घूमते वह गंगा के किनारे पहुँचीं। वहाँ उन्होंने भगवान गणेश को ध्यान में लीन देखा। उस समय गणेश जी एक रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान थे, उनके तन पर चंदन लगा था और गले में सुंदर मालाएं व आभूषण थे। गणेश जी के इस दिव्य और आकर्षक रूप को देखकर तुलसी उन पर मोहित हो गईं।

विवाह का प्रस्ताव और अनहोनी:

तुलसी के मन में गणेश जी से विवाह करने की तीव्र इच्छा जागी। उन्होंने गणेश जी की तपस्या भंग कर अपना विवाह प्रस्ताव उनके सामने रखा। उस समय भगवान गणेश ब्रह्मचारी थे और उन्होंने विनम्रतापूर्वक तुलसी का प्रस्ताव ठुकरा दिया।

श्राप का आदान-प्रदान:

अपने विवाह का प्रस्ताव ठुकराए जाने से तुलसी बहुत आहत और क्रोधित हुईं। आवेश में आकर उन्होंने गणेश जी को श्राप दिया कि उनके दो विवाह होंगे, जबकि गणेश जी ने अविवाहित रहने का प्रण लिया था।

गणेश जी को भी तुलसी का यह कृत्य और श्राप पसंद नहीं आया। उन्होंने भी तुलसी को श्राप दिया कि उनका विवाह एक असुर (राक्षस) शंखचूड़ से होगा और वह एक पौधे का रूप धारण करेंगी। उन्होंने यह भी कहा कि यद्यपि वह विष्णु और कृष्ण को प्रिय रहेंगी और कलयुग में पूजनीय होंगी, लेकिन उनकी (गणेश जी की) पूजा में तुलसी का प्रयोग कभी नहीं किया जाएगा।

धार्मिक महत्व और मान्यता:

इस कथा के अनुसार, गणेश जी ने तुलसी को यह वरदान भी दिया था कि वह विष्णु और कृष्ण की प्रिय तो रहेंगी, लेकिन उनकी पूजा में उनका पत्ता चढ़ाना वर्जित रहेगा। इसीलिए, मान्यता है कि गणेश जी को तुलसी चढ़ाने से वह प्रसन्न होने के बजाय रुष्ट हो सकते हैं। विघ्नहर्ता गणेश की पूजा में दूर्वा (हरी घास) को अत्यंत प्रिय माना जाता है, इसलिए तुलसी के स्थान पर दूर्वा ही अर्पित की जाती है।

यह परंपरा आज भी निभाई जाती है और गणेश चतुर्थी के अवसर पर भक्त बप्पा को प्रसन्न करने के लिए दूर्वा और अन्य प्रिय वस्तुएं चढ़ाते हैं, लेकिन तुलसी का पत्ता अर्पित करने से बचते हैं।