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Up Kiran, Digital Desk: उत्तराखंड सरकार ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था में एक बहुत बड़ा और ऐतिहासिक बदलाव किया है। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह ने 'उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक, 2025' को अपनी मंजूरी दे दी है। इस मंजूरी के साथ ही, राज्य में सालों से चले आ रहे 'मदरसा बोर्ड एक्ट, 2011' को तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया गया है।
इसका सीधा मतलब है कि अब उत्तराखंड में मदरसा बोर्ड का कोई अस्तित्व नहीं रहेगा और राज्य के सभी मदरसे अब सामान्य स्कूलों की तरह ही चलेंगे।
क्यों लिया गया यह फैसला: सरकार का इस फैसले के पीछे का मकसद मदरसों में पढ़ने वाले अल्पसंख्यक छात्रों को "आधुनिक शिक्षा" से जोड़ना है। सरकार का मानना है कि पुरानी व्यवस्था के कारण छात्र मुख्यधारा से कट रहे थे और उन्हें विज्ञान, गणित, अंग्रेजी और दूसरे जरूरी विषयों की वैसी शिक्षा नहीं मिल पा रही थी, जो बाकी स्कूलों के छात्रों को मिलती है। इस बदलाव का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अल्पसंख्यक छात्रों को भी रोजगार और उच्च शिक्षा के समान अवसर मिलें।
अब मदरसों का क्या होगा? नॉर्मल स्कूल बनेंगे: राज्य के सभी 117 मदरसे अब या तो राज्य के शिक्षा बोर्ड या फिर CBSE/ICSE जैसे केंद्रीय बोर्ड के तहत सामान्य स्कूलों के रूप में काम करेंगे।
लागू होगा सरकारी सिलेबस: इन स्कूलों में भी वही पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा जो राज्य के दूसरे सरकारी या प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाया जाता है।
धार्मिक शिक्षा (दीनी तालीम) का क्या? नया कानून धार्मिक शिक्षा पर रोक नहीं लगाता है, लेकिन इसकी एक शर्त है। अब दीनी तालीम स्कूल के समय के बाद या फिर छुट्टियों के दौरान ही दी जा सकेगी। इसे मुख्य पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं बनाया जा सकेगा।
सिर्फ मदरसों के लिए नहीं है नया कानून
'उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान (स्थापना और प्रशासन) विधेयक, 2025' सिर्फ मुस्लिम समुदाय के शैक्षणिक संस्थानों पर ही लागू नहीं होगा। यह कानून अब राज्य के सभी अल्पसंख्यक समुदायों जिनमें ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी भी शामिल हैं के द्वारा चलाए जा रहे सभी शैक्षणिक संस्थानों पर लागू होगा।
यह फैसला उत्तराखंड में शिक्षा के क्षेत्र में एकरूपता लाने और सभी छात्रों को एक समान मंच देने की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम माना जा रहा है।