
Up Kiran, Digital Desk: बुराई पर अच्छाई की जीत का सबसे बड़ा पर्व, दशहरा (या विजयादशमी), हमारे जीवन में एक खास महत्व रखता है। यह त्योहार सिर्फ भगवान राम की रावण पर विजय का ही नहीं, बल्कि माँ दुर्गा द्वारा महिषासुर नामक राक्षस पर विजय का भी प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि सत्य और धर्म की राह पर चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, अंत में जीत हमेशा सच्चाई की ही होती है।
दशहरा 2025: तिथि और शुभ मुहूर्तदशहरा तिथि: शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2025
विजय मुहूर्त: दोपहर 02:08 से दोपहर 02:55 तक (अवधि: 47 मिनट)
अपराह्न पूजा का समय: दोपहर 01:21 से दोपहर 03:42 तक
कैसे मनाया जाता है दशहरा? (प्रमुख Rituals) रावण दहन: यह दशहरे का सबसे मुख्य और प्रसिद्ध ritual है। रावण, उसके भाई कुंभकर्ण और पुत्र मेघनाद के विशाल पुतले बनाकर उन्हें जलाया जाता है, जो बुराई के प्रतीकात्मक अंत को दर्शाता है।
शस्त्र पूजा (आयुध पूजा): इस दिन शस्त्रों की पूजा करने की परंपरा है। क्षत्रिय और योद्धा अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं, वहीं आज के समय में कारीगर, व्यापारी और अन्य लोग अपने औजारों, वाहनों, लैपटॉप और उन सभी उपकरणों की पूजा करते हैं जो उनकी आजीविका का साधन हैं। यह उनके प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका है।
अपटा (सोना पत्ती) का आदान-प्रदान: महाराष्ट्र और भारत के कुछ अन्य हिस्सों में लोग एक-दूसरे को 'सोना पत्ती' के रूप में अपटा के पत्ते देते हैं। यह सौभाग्य, समृद्धि और सम्मान साझा करने का प्रतीक माना जाता है।
क्या है दशहरा का आध्यात्मिक महत्व?
दशहरा सिर्फ एक बाहरी उत्सव नहीं है, बल्कि यह अपने भीतर की बुराइयों को खत्म करने का भी प्रतीक है।
आंतरिक राक्षसों पर विजय: रावण के दस सिरों को दस मानवीय बुराइयों का प्रतीक माना जाता है - काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद (अहंकार), मत्सर (ईर्ष्या), स्वार्थ, अन्याय, क्रूरता और वासना। रावण दहन का असली मतलब इन आंतरिक बुराइयों को खत्म करने और एक बेहतर इंसान बनने का संकल्प लेना है।
नई शुरुआत का दिन: दशहरा किसी भी नए काम को शुरू करने के लिए एक अत्यंत शुभ दिन माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन शुरू किया गया कोई भी कार्य सफलता दिलाता है।
यह पर्व हमें हमेशा धर्म, साहस और सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।