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Up Kiran, Digital Desk: भारतीय शेयर बाजार में छोटे पूंजीकरण (स्मॉल-कैप) वाले शेयरों ने पिछले सात वर्षों में कमाल कर दिखाया है। 2017 से अब तक इनका मार्केट वैल्यू (बाजार पूंजीकरण) पांच गुना बढ़कर ₹8.11 लाख करोड़ से ₹42.27 लाख करोड़ हो गया है। यह शानदार वृद्धि निवेशकों के लिए एक सुनहरा अवसर साबित हुई है।

इस अवधि में स्मॉल-कैप शेयरों ने मिड-कैप और लार्ज-कैप शेयरों को पीछे छोड़ दिया है, जो उनकी प्रभावशाली वृद्धि को दर्शाता है। बीएसई स्मॉल-कैप इंडेक्स में 258% की शानदार वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि इसी दौरान बेंचमार्क सेंसेक्स में लगभग 124% की वृद्धि हुई है। यह बताता है कि छोटे शेयरों में निवेशकों को अधिक रिटर्न मिला है।

स्मॉल-कैप सेगमेंट में इस उछाल के पीछे कई कारण हैं। खुदरा निवेशकों (रिटेल इन्वेस्टर्स) की बढ़ती भागीदारी, सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) के माध्यम से लगातार निवेश और भारतीय अर्थव्यवस्था में बढ़ती निवेशक भावना ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सेबी (SEBI) द्वारा लाए गए पारदर्शिता और नियमन के उपायों ने भी निवेशकों का विश्वास बढ़ाया है, जिससे उन्हें इन शेयरों में निवेश करने में अधिक सुरक्षा महसूस हुई है।

हालांकि, निवेशकों को यह याद रखना चाहिए कि स्मॉल-कैप स्टॉक में निवेश करना लार्ज-कैप की तुलना में अधिक जोखिम भरा हो सकता है। इसलिए, किसी भी निवेश से पहले कंपनी के बुनियादी सिद्धांतों (जैसे राजस्व, मुनाफा और बैलेंस शीट की मजबूती) का गहन विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है। अत्यधिक मूल्यांकन (ओवरवैल्यूएशन) वाले शेयरों से बचना चाहिए।

विशेषज्ञों का मानना है कि स्मॉल-कैप बाजार में अभी भी विकास की काफी गुंजाइश है, खासकर जब भारत की अर्थव्यवस्था अगले कुछ वर्षों में 5 ट्रिलियन डॉलर के आंकड़े को छूने की ओर बढ़ रही है। हालांकि, बाजार में अस्थिरता बनी रह सकती है, और दीर्घकालिक निवेश का दृष्टिकोण ही सर्वोत्तम परिणाम दे सकता है।

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