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Up Kiran, Digital Desk: मध्य पूर्व एक बार फिर वैश्विक चिंता का केंद्र बन गया है। ईरान और इजरायल के बीच गहराता तनाव अब सैन्य हमले और कूटनीतिक हमलों के स्तर तक पहुंच चुका है। 13 जून 2025 को इजरायल द्वारा किए गए 'ऑपरेशन राइजिंग लायन' के तहत ईरान पर व्यापक सैन्य हमला किया गया जिसमें ईरानी परमाणु ठिकानों से लेकर शीर्ष सैन्य अधिकारियों के घर तक निशाना बने। इस घटना ने न केवल मिडिल ईस्ट की स्थिरता को हिलाया है, बल्कि भारत समेत कई देशों की विदेश नीति पर भी नए सवाल खड़े कर दिए हैं।

इजरायल का हमला और अमेरिका की भूमिका

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस हमले को "रक्षात्मक कार्रवाई" बताया है। उनका दावा है कि ईरान की परमाणु गतिविधियाँ इजरायल की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सीधा खतरा बन चुकी थीं। वहीं अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने बयान में ईरान को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि "जो भी देश आतंक को समर्थन देगा, वह खुद को तबाही की ओर धकेलेगा।"

मगर इस पूरे घटनाक्रम पर जो सबसे अधिक विवादास्पद टिप्पणी आई, वह थी शिया धर्म गुरु मौलाना कल्बे जवाद की।

अमेरिका-इजरायल सबसे बड़ा धोखा, मौलाना कल्बे जवाद का बयान

शिया धर्म गुरु मौलाना कल्बे जवाद ने इस सैन्य हमले को लेकर अमेरिका और इजरायल पर तीखा हमला बोला। उनका कहना है कि अमेरिका और इजरायल ने बहुत बड़ा धोखा दिया है। ईरान बातचीत कर रहा था और हमला कर दिया गया। अमेरिका से बड़ा धोखेबाज़ कोई नहीं और इजरायल तो उसका चमचा है।

भारत पर सवाल: क्या न्यूट्रल रहना अब भी विकल्प है

मौलाना जवाद ने भारत की विदेश नीति पर भी तीखी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान इजरायल और अमेरिका से दोस्ती कर रहा है, तो इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा। न्यूट्रल होना अब ज़ालिमों का साथ देना है।

भारत वर्षों से मिडिल ईस्ट में संतुलन बनाकर चलने की कोशिश करता रहा है सऊदी अरब, ईरान, इजरायल और अमेरिका हर किसी से कूटनीतिक रिश्ते बनाए रखना उसकी रणनीति रही है। मगर मौजूदा हालात में यह 'न्यूट्रल रहना' नीति अब सवालों के घेरे में है।

 

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