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Up Kiran, Digital Desk: हज के लिए रवाना होते समय जब आमिर ने सफेद एहराम पहना और घर से निकलते वक्त नम आंखों से अपने माता-पिता का माथा चूमा तो उनका दिल उम्मीद और श्रद्धा से भरा था। मगर जैसे ही वे त्रिपोली एयरपोर्ट पहुंचे एक अप्रत्याशित अड़चन उनका इंतज़ार कर रही थी। सुरक्षा जांच की लंबी कतारों झुंझलाए यात्रियों और अफसरों की सख्त निगाहों के बीच आमिर की फ्लाइट आँखों के सामने उड़ गई एक ऐसा पल जब समय मानो थम गया और सपने धुंधले पड़ने लगे।
मगर आमिर ने हार नहीं मानी। अल्लाह के नाम पर उन्होंने फिर से कोशिश की। उन्होंने दूसरी फ्लाइट बुक की मगर जब विमान रनवे पर था तकनीकी खराबी के कारण उसे अचानक रोक दिया गया। तीसरी बार फिर वही हुआ इंजन में समस्या और उड़ान रद्द। इस दौरान कई यात्री हताश हो गए कुछ ने अपने टिकट कैंसल करवा दिए मगर आमिर की आंखों में अब भी एक चमक थी यकीन की चमक।
तीसरे प्रयास में जब विमान आखिरकार उड़ान भरने को तैयार हुआ आमिर की धड़कनें तेज़ थीं। उन्होंने एक बार फिर बिस्मिल्लाह कहा और सीट बेल्ट बाँधी। उड़ान सफल रही और वे मक्का पहुंच गए पवित्र धरती जहाँ हर कदम एक दुआ है और हर सांस इबादत।
मगर किस्सा यहीं खत्म नहीं हुआ। जब विमान ने दूसरी बार लैंडिंग की और आमिर के उतरते ही पायलट ने हल्के मुस्कुराते हुए कहा "अब मैं तभी उड़ान भरूंगा जब आमिर भाई साथ हों।" पूरे क्रू और यात्रियों के चेहरे पर मुस्कान थी और आंखों में हैरत। एक साधारण यात्री जिसकी आस्था ने आसमान को भी झुका दिया।
इस पूरी यात्रा ने आमिर के भीतर कुछ बदल दिया एक और भी गहरा भरोसा एक अडिग यकीन कि जब इरादे पाक हों तो राह खुद-ब-खुद बनती है। सोशल मीडिया पर उनकी ये कहानी तूफान की तरह फैल गई है। लोग इसे "हज की सबसे प्रेरणादायक यात्रा" कह रहे हैं। किसी ने लिखा "अल्लाह देर कर सकता है मगर इनकार नहीं करता।"
आज आमिर अल मेहदी मंसूर अल गद्दाफी न केवल हज के एक यात्री हैं बल्कि उन लाखों लोगों के लिए उम्मीद का चेहरा बन चुके हैं जो मुश्किलों के बीच भी यकीन नहीं खोते।
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