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Up Kiran , Digital Desk: बीते माह 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए भयावह आतंकी हमले जिसमें 26 निर्दोषों की जान चली गई के बाद भारत ने कड़ा रुख अख्तियार किया। ठीक 15 दिन बाद 6 मई को भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में स्थित नौ आतंकी ठिकानों पर अचूक हवाई हमले किए। इस कार्रवाई ने सीमा पार आतंकी संगठनों को भारी क्षति पहुँचाई।
हालांकि भारत की इस जवाबी कार्रवाई के बाद सीमा पर तनाव चरम पर पहुँच गया। आशंकाओं के बीच युद्ध जैसे हालात बन गए थे। ऐसे में संभावित हवाई हमलों से नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई शहरों में ब्लैकआउट किया गया और लोगों को युद्धकालीन परिस्थितियों से निपटने का प्रशिक्षण दिया गया।
इस गंभीर परिदृश्य के बीच एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है: जब आधुनिक मिसाइलें रात के अंधेरे में भी अपने लक्ष्य को भेद सकती हैं तो फिर ब्लैकआउट की आवश्यकता क्यों पड़ती है
क्या है ब्लैकआउट
ब्लैकआउट एक सुरक्षात्मक प्रक्रिया है जो शत्रु देशों द्वारा संभावित हवाई या ड्रोन हमलों के खतरे के दौरान लागू की जाती है। इसके तहत शहरों की सभी कृत्रिम रोशनी जिसमें घरों वाहनों और सार्वजनिक स्थलों की लाइटें शामिल हैं को पूरी तरह से बंद कर दिया जाता है। संवेदनशील क्षेत्रों में पूर्ण अंधकार कायम किया जाता है। इस प्रक्रिया का प्राथमिक उद्देश्य दुश्मन को किसी भी प्रकार की दृश्य पहचान से वंचित करना है ताकि वे बमबारी या अन्य हमलों को अंजाम न दे सकें।
ब्लैकआउट के दौरान क्या होता है
ब्लैकआउट के दौरान शहरों और कस्बों को दुश्मन की संभावित कार्रवाई से बचाने के लिए व्यापक कदम उठाए जाते हैं। घरों दुकानों और कार्यालयों की सभी लाइटें बंद कर दी जाती हैं। सड़कों पर वाहनों की आवाजाही रोक दी जाती है और उनके इंजन व हेडलाइटें बंद करा दिए जाते हैं। आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर सभी वाहनों को रोक दिया जाता है। घरों और अन्य इमारतों की खिड़कियों को काले पर्दों से ढक दिया जाता है। नागरिकों को घरों के अंदर रहने की सलाह दी जाती है और सायरन बजाकर उन्हें सतर्क किया जाता है। इस दौरान पुलिस और सेना की गश्त बढ़ जाती है और सुरक्षा बल हाई अलर्ट पर रहते हैं।
आधुनिक तकनीक के युग में ब्लैकआउट क्यों
यह सवाल स्वाभाविक है कि जब दुश्मन जीपीएस और सैटेलाइट जैसी आधुनिक तकनीकों की मदद से अंधेरे में भी लक्ष्यों की पहचान कर सकता है तो ब्लैकआउट कितना प्रभावी है
विशेषज्ञों का मानना है कि ब्लैकआउट अब भी एक महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय है। जब शहरों की लाइटें बंद होती हैं तो दुश्मन के वीडियो कैमरे और अन्य निगरानी उपकरणों विशेष रूप से इन्फ्रारेड सेंसरों के लिए भी लक्ष्यों की पहचान करना मुश्किल हो जाता है। भले ही जीपीएस लक्ष्यों की सटीक भौगोलिक जानकारी प्रदान कर सकता है मगर धरातल पर अंधेरा होने के कारण उनकी दृश्य पहचान सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
इसके अतिरिक्त सैटेलाइट कुछ हद तक डेटा तो प्रदान कर सकते हैं मगर रात के अंधेरे में उनके द्वारा भेजे गए सिग्नल सीमित और कमजोर हो जाते हैं। घने अंधेरे के कारण दुश्मन को मिलने वाली दृश्य जानकारी काफी हद तक कम हो जाती है जिससे उनके लिए हमला करना या लक्ष्यों को सटीकता से भेदना मुश्किल हो जाता है।
हालांकि आधुनिक युद्ध तकनीकें तेजी से विकसित हो रही हैं ब्लैकआउट अभी भी पारंपरिक और आधुनिक खतरों से बचाव की एक महत्वपूर्ण रणनीति बनी हुई है। यह न केवल दुश्मन की दृश्य क्षमताओं को बाधित करता है बल्कि नागरिकों के बीच सुरक्षा की भावना भी पैदा करता है जो तनावपूर्ण परिस्थितियों में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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