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Up Kiran, Digital Desk: क्या महज एक वायरल मैसेज, एक झूठी अफवाह और भीड़ की मानसिकता किसी की जिंदगी छीन सकती है? 2023 में आई हिंदी फिल्म ‘Stolen’ इस सवाल का जवाब न सिर्फ देती है, बल्कि आपके ज़हन में देर तक गूंजने वाला असर भी छोड़ती है। अब यह फिल्म Amazon Prime Video पर स्ट्रीमिंग कर रही है और थ्रिलर फिल्मों के शौकीनों के बीच तेजी से चर्चा में है। मात्र 1 घंटे 32 मिनट की इस फिल्म में न तो भारीभरकम स्टारकास्ट है, न ही कोई मसाला गाना। लेकिन इसके बावजूद यह फिल्म अपने कथानक और कड़वी सच्चाई के कारण लंबे समय तक याद रह जाती है।

कहानी: एक बच्ची का अपहरण, दो भाई, और समाज की आँखें मूंदे भीड़

राजस्थान के एक छोटे से रेलवे स्टेशन पर कहानी शुरू होती है। झुंपा (मिया मॉल्ज़र), एक गरीब महिला, अपनी पांच महीने की बच्ची के साथ स्टेशन की बेंच पर सो रही है। वहीं, परेशान-सा दिखता गौतम (अभिषेक बनर्जी) अपने छोटे भाई रमन (शुभम वर्धन) को लेने आया है। कुछ देर बाद, झुंपा की बच्ची रहस्यमय तरीके से गायब हो जाती है।

शक की सुई रमन पर टिकती है, और कहानी अचानक से अपराध, संदेह और सामाजिक पूर्वाग्रहों की ओर मुड़ जाती है। स्टेशन पर मौजूद हर चेहरा संदिग्ध लगता है – चायवाला, पुलिसकर्मी, या खुद झुंपा? पुलिस की पूछताछ और चायवाले के बयान से एक कड़ी सामने आती है, लेकिन क्या वो कड़ी सही है या भीड़ का अगला निशाना बनने वाला कोई और मासूम?

थ्रिलर से बढ़कर एक सामाजिक दस्तावेज

निर्देशक करण तेजपाल ने ‘Stolen’ को एक सीधी-साधी अपहरण की कहानी बनाकर नहीं छोड़ा। फिल्म की हर परत के साथ भारतीय समाज की वह गहराई खुलती है, जो अक्सर अखबारों की सुर्खियों में भी पीछे छूट जाती है — भीड़ का न्याय, सोशल मीडिया से उफनती अफवाहें, और उन पर आंख मूंदकर भरोसा करते लोग।

फिल्म loosely 2018 की उस वास्तविक घटना पर आधारित है जिसमें बिहार के पांच युवकों को बच्चा चुराने के झूठे आरोप में असम के एक गांव में पीट-पीट कर मार दिया गया था। वजह थी – व्हाट्सएप पर वायरल एक झूठी खबर। ‘Stolen’ उसी भीड़ की सोच पर एक तीखा तमाचा है, जो बिना सोचे-समझे इंसाफ का ठेका ले लेती है।

अभिनय: बिना शोर के गहराई पैदा करता है

अभिषेक बनर्जी (जो ‘पाताल लोक’ और ‘बाला’ जैसी फिल्मों से चर्चित हो चुके हैं) इस फिल्म में एकदम संयमित परफॉर्मेंस देते हैं। शुभम वर्धन अपने छोटे लेकिन अहम किरदार में प्रभावशाली हैं, और मिया मॉल्ज़र तो हर फ्रेम में इतनी वास्तविक लगती हैं कि लगता है हम कोई डॉक्यूमेंट्री देख रहे हैं।

बिना गानों की फिल्म, मगर हर सीन में संगीत है

इस फिल्म की सबसे बड़ी ताकत इसका सन्नाटा है। कोई गाना नहीं, कोई लंबा संवाद नहीं — लेकिन फिर भी हर सीन में एक बेचैनी है, एक अनकही बात जो दर्शक को झकझोरती है। कैमरा वर्क और लोकेशन रॉ हैं, बिना किसी बनावटीपन के।

क्यों देखें ये फिल्म?

अगर आपको समाज के अंधकारमय पहलुओं पर आधारित सिनेमा पसंद है।

अगर आप झूठी खबरों और सोशल मीडिया के खतरनाक प्रभाव को समझना चाहते हैं।

अगर आप बिना स्टार पावर के दमदार कहानी देखना चाहते हैं।

Stolen सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक वॉर्निंग है — उस समाज के लिए, जो बिना सोच के सजा देने को उतावला रहता है। यह फिल्म एक आईना है, जिसमें देखने की हिम्मत हर किसी में नहीं होती।

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