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Up Kiran, Digital Desk: बिहार विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट तेज होते ही राजनीतिक हलकों में नई उठापटक शुरू हो गई है। बड़े दल जहां अपने पुराने गठबंधन को बचाए रखने की जद्दोजहद में लगे हैं, वहीं कुछ छोटे दल नई संभावनाओं की तलाश कर रहे हैं। इसी बीच पीस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और बिहार प्रभारी हाफिज गुलाम सरवर के बयान ने चुनावी हवा को और गर्म कर दिया है।
सरवर का कहना है कि अगर एमआईएएम, पीस पार्टी, आज़ाद समाज पार्टी और प्रशांत किशोर की पार्टी एक प्लेटफॉर्म पर आ जाएं, तो इस बार सत्ता बदलना लगभग तय माना जा सकता है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि ऐसी स्थिति में बिहार का अगला मुख्यमंत्री प्रशांत किशोर बन सकते हैं।
प्रशांत किशोर के लिए मौका या चुनौती?
हाफिज गुलाम सरवर का यह भी दावा है कि यदि प्रशांत किशोर इस संभावित गठबंधन से अलग रहते हैं, तो उनकी पार्टी बेहद सीमित असर डाल पाएगी। उनके मुताबिक, बिना गठबंधन किए वे महज 3 से 5 सीटों तक सिमट सकते हैं। वहीं अगर साथ आ जाते हैं, तो राजनीतिक तस्वीर पूरी तरह बदल सकती है। सरवर ने चेतावनी दी कि पीके (प्रशांत किशोर) अगर इस मौके को गंवाते हैं, तो उनके राजनीतिक भविष्य पर गंभीर खतरा मंडरा सकता है।
बदलते समीकरण में छोटे दलों का बड़ा दांव
फिलहाल बिहार की राजनीति भाजपा और जेडीयू के रिश्तों, साथ ही महागठबंधन की आंतरिक खींचतान पर केंद्रित दिख रही है। लेकिन छोटे दलों की सक्रियता से साफ है कि वे भी विधानसभा चुनाव में अपनी मजबूत जगह बनाना चाहते हैं। पीस पार्टी और अन्य क्षेत्रीय संगठन यह समझ चुके हैं कि अकेले दम पर असर डालना मुश्किल होगा, इसलिए वे गठबंधन की राजनीति को ही रास्ता मान रहे हैं।
क्या नया तीसरा मोर्चा बनेगा चुनौती?
अगर वास्तव में एमआईएएम, पीस पार्टी, आज़ाद समाज पार्टी और प्रशांत किशोर का जन सुराज साथ आ जाते हैं, तो यह गठबंधन दोनों ही बड़े खेमों के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है। खासकर युवा मतदाता, जिन पर पीके का सीधा प्रभाव है, इस नई बनी ताकत की ओर झुक सकते हैं। बिहार में पिछले कुछ वर्षों से युवाओं की भूमिका चुनावी नतीजों में निर्णायक रही है।
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