Up Kiran, Digital Desk: बिहार की राजनीति में गुरुवार को एक बार फिर वही पुराना दृश्य दोहराया गया जब नीतीश कुमार ने दसवीं बार मुख्यमंत्री की शपथ ली। बाहर से देखने में सबकुछ वैसा ही लगा जैसे पहले कई बार होता रहा है। लेकिन जैसे ही मंत्रिमंडल का बंटवारा सामने आया, साफ हो गया कि इस बार खेल पूरी तरह बदल चुका है।
भाजपा ने पलट दी बाजी
इस बार सबसे बड़ी ताकत भारतीय जनता पार्टी के हाथ लगी है। अभी तक गठबंधन में छोटा भाई बनी रहने वाली भाजपा ने अब सबसे ज्यादा मंत्री अपने खाते में डाल लिए। पूरे 14 मंत्री भाजपा कोटे से हैं जबकि नीतीश की अपनी पार्टी जनता दल यूनाइटेड को सिर्फ आठ सीटें ही मिल पाईं। मतलब साफ है कि दिल्ली से चलने वाली हवा इस बार पटना में बहुत तेज बह रही है।
सूत्र बताते हैं कि भाजपा नेतृत्व ने शपथ ग्रहण से पहले ही अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। नतीजा यह हुआ कि दो डिप्टी सीएम के पद भी भाजपा के पास ही रहे। पहले खबरें थीं कि नीतीश इस बार एक भी उपमुख्यमंत्री नहीं रखना चाहते। फिर भी सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा को डिप्टी सीएम बनाए रखना भाजपा की बड़ी जीत मानी जा रही है। साथ ही विधानसभा अध्यक्ष का पद भी पार्टी को मिलने की पूरी संभावना है।
जातीय गणित में माहिर साबित हुई भाजपा
मंत्रियों के चयन में भाजपा ने बिहार के जटिल सामाजिक समीकरण को बखूबी साधा है। सबसे ज्यादा जोर लव-कुश समीकरण और अगड़े वोटों पर दिया गया। इसी रणनीति के तहत सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। ब्राह्मण चेहरों में मंगल पांडेय और नितिन नबीन को जगह मिली तो कायस्थ समाज से नितिन नबीन का नाम भी शामिल किया गया।
इसके अलावा संजय सिंह टाइगर, अरुण शंकर प्रसाद, सुरेंद्र मेहता, रमा निषाद, लखेंद्र पासवान, नारायण प्रसाद, श्रेयसी सिंह और प्रमोद कुमार चंद्रवंशी जैसे नेता भी मंत्री बनें। रामकृपाल यादव और दिलीप जायसवाल का नाम भी लिस्ट में है। दिलचस्प बात यह है कि पिछली सरकार में उद्योग मंत्री रहे नीतीश मिश्रा इस बार बाहर हो गए। उनकी जीत का मार्जिन पिछले चुनाव से ज्यादा था और चर्चा थी कि उन्हें फिर मौका मिलेगा। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।
बाप-बेटे की सरकार में एंट्री
गठबंधन के छोटे साथियों ने भी अपने हिस्से का लड्डू बखूबी बांटा। चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास को दो मंत्री पद मिले। वहीं जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को एक-एक मंत्री पद दिया गया।
इन दोनों नेताओं ने मौके का पूरा फायदा उठाया और अपने बेटों को ही मंत्री बना दिया। मांझी ने बेटे संतोष सुमन को कैबिनेट में जगह दिलाई तो कुशवाहा ने अपने बेटे दीपक प्रकाश को पहली बार मंत्री पद सौंपा। बिहार की राजनीति में वंशवाद का यह नया अध्याय किसी को चौंकाने वाला नहीं लगा क्योंकि यहां यह पहले से चलता आ रहा है।
आगे क्या?
नीतीश कुमार भले ही दसवीं बार कुर्सी पर बैठे हों लेकिन इस बार उनके हाथ में सत्ता की डोर उतनी मजबूत नहीं दिख रही। भाजपा ने जिस तरह संख्या बल और महत्वपूर्ण पदों पर कब्जा जमाया है उससे साफ है कि बिहार में अब नीतीश की नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की चलेगी।
अब देखना यह है कि यह नया गठबंधन कितने दिन टिकता है और नीतीश कुमार अपनी पुरानी आदत के मुताबिक कब तक एक ही खेमे में रहते हैं। बिहार की सियासत में तो कुछ भी स्थायी नहीं होता। बस नजारा बदलता रहता है।
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