
Up Kiran, Digital Desk: रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने मंगलवार को भौतिकी (Physics) के क्षेत्र में 2025 के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित पुरस्कार, यानी नोबेल पुरस्कार, की घोषणा कर दी है। इस साल यह सम्मान दो वैज्ञानिकों, जॉन हॉपफील्ड और जेफ्री हिंटन, को संयुक्त रूप से दिया गया है, जिन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की दुनिया में क्रांति लाने वाली खोज की है।
उन्होंने भौतिकी के सिद्धांतों का इस्तेमाल करके कुछ ऐसा बनाया है, जो इंसानी दिमाग की तरह ही सीखने और चीजों को पहचानने की क्षमता रखता है। सीधे शब्दों में कहें तो, उन्होंने उस दरवाजे को खोला है जहां से AI ने सोचना सीखा।
क्या है यह 'दिमाग वाली' खोज: इन दोनों वैज्ञानिकों ने अलग-अलग काम करते हुए, आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
क्या होता है यह न्यूरल नेटवर्क?: इसे आप एक कृत्रिम यानी नकली दिमाग समझिए। जैसे हमारा दिमाग लाखों-करोड़ों न्यूरॉन्स (तंत्रिका कोशिकाओं) से मिलकर बना है जो एक-दूसरे से जुड़कर सीखते और याद रखते हैं, ठीक वैसे ही इन वैज्ञानिकों ने गणित और भौतिकी का इस्तेमाल करके एक ऐसा सिस्टम बनाया जो डेटा से पैटर्न सीख सकता है।
जॉन हॉपफील्ड ने क्या किया: 82 वर्षीय जॉन हॉपफील्ड ने 1982 में एक ऐसा सैद्धांतिक ढांचा तैयार किया था, जिसे हॉपफील्ड नेटवर्क कहा जाता है।
यह एक तरह की कृत्रिम मेमोरी (याददाश्त) की तरह काम करता है। जैसे हमारा दिमाग किसी अधूरी याद को देखकर भी पूरी तस्वीर पहचान लेता है (उदाहरण के लिए, किसी दोस्त की सिर्फ आंखें देखकर भी हम उसे पहचान लेते हैं), वैसे ही यह नेटवर्क भी बिखरे हुए या अधूरे डेटा से सही पैटर्न को पहचान सकता है। उनकी इसी खोज ने मशीन लर्निंग को एक नई दिशा दी।
जेफ्री हिंटन का क्या है योगदान: 77 वर्षीय जेफ्री हिंटन को तो 'गॉडफादर ऑफ AI' यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का पितामह भी कहा जाता है। उन्होंने न्यूरल नेटवर्क को सीखने (Train) का एक बेहतर तरीका विकसित किया, जिससे वे और भी ज्यादा स्मार्ट और सटीक बन गए।
आज हम जो कुछ भी AI में देख रहे हैं - चाहे वह गूगल पर तस्वीरें खोजना हो, चेहरे की पहचान (Face Recognition) हो, या फिर ChatGPT जैसे टूल हों - उन सब की नींव में हिंटन का काम छिपा हुआ है।
दिलचस्प बात यह है कि हिंटन, जो कभी गूगल में काम करते थे, अब AI के खतरों को लेकर दुनिया को आगाह भी कर रहे हैं।
क्यों महत्वपूर्ण है यह खोज: यह खोज सिर्फ कंप्यूटर साइंस के लिए ही नहीं, बल्कि भौतिकी के लिए भी एक बहुत बड़ी छलांग है। इसने यह दिखाया है कि कैसे प्रकृति (इंसानी दिमाग) के काम करने के तरीके से प्रेरणा लेकर, हम ऐसी मशीनें बना सकते हैं जो इंसानों की तरह ही सीख सकती हैं और समझ सकती हैं।
इन दोनों वैज्ञानिकों के काम के बिना, शायद आज हमारे पास वह AI नहीं होता जो हमारी जिंदगी को इतनी तेजी से बदल रहा है।