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Up Kiran, Digital Desk: मध्य पूर्व में चिंगारी एक बार फिर भड़की है और इस बार इसकी लपटें वैश्विक तेल बाजार को झुलसा सकती हैं। ईरान और इजराइल के बीच बढ़ते तनाव ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनिश्चितता को जन्म दिया है और इसका सबसे तात्कालिक प्रभाव कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ा है। वैश्विक तेल बाज़ार में कीमतों में लगातार उछाल देखा जा रहा है और अगर यह भू-राजनीतिक तनाव युद्ध में बदलता है तो तेल की कीमतें $200 से $300 प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं। यह चेतावनी खुद इराक के उप-प्रधानमंत्री ने हाल ही में दी है।
'ब्लैक गोल्ड' की ताकत: ईरान का कच्चा तेल भंडार
ईरान दुनिया के चौथे सबसे बड़े प्रमाणित कच्चे तेल भंडार वाला देश है। 157.8 बिलियन बैरल के अनुमानित भंडार के साथ इसका 'काला सोना' वैश्विक ऊर्जा भूगोल को पुनर्परिभाषित करने की क्षमता रखता है। मौजूदा बाजार भाव ($76 प्रति बैरल) के अनुसार इन भंडारों का मूल्य लगभग 12 ट्रिलियन डॉलर बैठता है।
यह राशि अमेरिका और रूस जैसे स्थापित तेल उत्पादकों की तुलना में कहीं अधिक है और चीन जो दुनिया का सबसे बड़ा तेल आयातक है उसके लिए भी यह रणनीतिक रूप से बेहद अहम हो जाता है।
तेल पर टिकी ईरान की अर्थव्यवस्था
ईरान की जीडीपी भले ही वर्तमान में लगभग $446 बिलियन है और वह दुनिया की 37वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है लेकिन उसके तेल संसाधन उसे सुपरपावर बनने की संभावित शक्ति देते हैं।
ईरान प्रतिदिन औसतन 3.3 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन करता है जिसमें से लगभग 2 मिलियन बैरल का निर्यात करता है। 2023 में उसका शुद्ध तेल निर्यात राजस्व $53 बिलियन था जो 2021 के $37 बिलियन से तेज़ वृद्धि है।
अगर वैश्विक कीमतें तीन गुना तक बढ़ती हैं और प्रतिबंधों में ढील दी जाती है तो विश्लेषकों का मानना है कि ईरान की अर्थव्यवस्था दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी बन सकती है अमेरिका और चीन के बाद।
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