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Up kiran,Digital Desk : ज़िंदगी के कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, जिन्हें हम नहीं चुनते, बल्कि किस्मत खुद हमें उनसे मिलाती है। ज्योतिष के अनुसार, विवाह सिर्फ एक सामाजिक या भावनात्मक बंधन नहीं, बल्कि दो आत्माओं का मिलन है, जो कर्मों की प्रगति और आत्मिक विकास के लिए होता है। जहाँ कुछ विवाह हमारे प्रयासों से होते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं जिन्हें 'ब्रह्मांड की योजना' कहा जा सकता है। जब ग्रहों का एक खास योग बनता है, तब सबसे शक्की इंसान भी मानने लगता है कि प्यार और रिश्ते वाकई सितारों में लिखे होते हैं।

'सुहाग योग' बनाने वाले देवदूत: शुक्र और बृहस्पति

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, प्रेम, आकर्षण और इच्छाओं के ग्रह शुक्र (Venus) और आशीर्वाद, धर्म व विस्तार के ग्रह बृहस्पति (Jupiter) विवाह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जब ये दोनों शुभ ग्रह एक साथ आते हैं या एक-दूसरे पर अपनी शुभ दृष्टि डालते हैं, तो 'सुहाग योग' बनता है। ऐसे विवाह दैवीय संयोग माने जाते हैं।

  1. किस्मत का साथ: जिन लोगों के जीवन में ऐसा योग बनता है, वे अक्सर अपने जीवनसाथी से किसी योजना के तहत नहीं, बल्कि किस्मत के इशारे पर मिलते हैं।
  2. सहज भावनात्मक जुड़ाव: भले ही शादी पारंपरिक हो या अरेंज मैरिज, ऐसे रिश्तों में भावनात्मक जुड़ाव अपने आप, धीरे-धीरे गहरा होता जाता है।

'सप्तम भाव' का संकेत: जब खुलते हैं विवाह के द्वार

ज्योतिष में सप्तम भाव (7th House) विवाह और साझेदारी का प्रतिनिधित्व करता है। जब सप्तम भाव का स्वामी अच्छी स्थिति में होता है, और उस पर शुक्र, बृहस्पति या चंद्रमा जैसे शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ती है, साथ ही सही दशा (planetary period) चल रही हो, तो विवाह अक्सर सहजता से हो जाता है।

  1. 'सब अपने आप हो गया' वाला एहसास: ऐसे विवाहों में अक्सर यह अनुभव होता है कि सब कुछ खुद-ब-खुद जुड़ता चला गया - चाहे वह कोई अचानक हुई मुलाकात हो, विवाह का अप्रत्याशित प्रस्ताव हो, या कोई पुराना दोस्त ही जीवनसाथी बन जाए।

टैरो कार्ड रीडर और न्यूमेरोलॉजिस्ट पूजा वर्मा के अनुसार, ज्योतिषीय गणनाएँ यह स्पष्ट करती हैं कि विवाह में ग्रहों की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होती है और कैसे कुछ रिश्ते सचमुच 'सितारों में लिखे' होते हैं।