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सचिवालय में लंबे समय से एक ही विभाग में स्थिर चल रहे अधिकारियों और कर्मचारियों के स्थानांतरण को लेकर हाल ही में लागू की गई नई तबादला नीति की पहली तारीख 31 जुलाई बीत गई, मगर प्रशासन की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इससे न सिर्फ नीति की प्रभावशीलता पर सवाल उठे हैं, बल्कि सचिवालय में बदलाव के प्रति कर्मचारियों और आम जनता की उम्मीदों को भी ठेस पहुंची है।
ये नई नीति सचिवालय सेवा के तहत विभिन्न पदों पर कार्यरत कर्मचारियों जैसे अनुभाग अधिकारी, संयुक्त सचिव, समीक्षा अधिकारी, सहायक समीक्षा अधिकारी और कंप्यूटर सहायकों के लिए बनाई गई थी। इसका मकसद था हर साल 31 जुलाई तक वार्षिक स्थानांतरण के माध्यम से ताजगी और नई व्यवस्थाओं को सुनिश्चित करना। साथ ही तैनाती अवधि की कटऑफ तिथि 1 अप्रैल निर्धारित कर दी गई थी ताकि एक निश्चित समय सीमा के भीतर तबादलों को पूरा किया जा सके।
नियमों के मुताबिक, किसी विभाग में श्रेणी-क, ख या ग के अधिकारी और कर्मचारी दोबारा उसी जगह तैनात होने से पहले कम से कम पांच साल का अंतराल रखना जरूरी था। इसके साथ ही तबादले के बाद तीन दिन के भीतर बिना किसी अतिरिक्त इंतजार के नए पद पर कर्तव्यभार संभालना अनिवार्य था। यह सारे प्रावधान तबादलों को अधिक प्रभावी और अनुशासित बनाने की कोशिश थे।
जानें क्यों लाई गई थी नई नीति
हालांकि, सचिवालय में पहले भी 2007 में ऐसी ही कोई नीति लागू करने का प्रयास किया गया था, मगर वह अधूरी ही रह गई थी। कई विभागों में आज भी अधिकारी लंबे समय से बिना बदलाव के तैनात हैं, वही उनमें से कुछ को कम जिम्मेदारियां मिल रही हैं। कुछ अफसर ऐसे भी हैं जो उच्च अधिकारियों के खास होने की वजह से वर्षों तक अपने पद पर टिके रहते हैं। इस स्थिति को सुधारने के लिए ही नई नीति लाई गई थी।
सचिवालय कर्मचारी संघ के पूर्व अध्यक्ष दीपक जोशी ने इस पूरे मामले पर कड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि नीति बनाते समय कर्मचारियों की राय नहीं ली गई, जिससे कई महत्वपूर्ण पहलुओं को नजरअंदाज किया गया। उन्होंने विशेष रूप से इस बात पर चिंता जताई कि नीति में सेवा की अधिकतम अवधि का उल्लेख जरूर है, मगर न्यूनतम सेवा अवधि के संबंध में कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं दिए गए। जोशी ने प्रशासन से आग्रह किया है कि इस नीति पर तुरंत काम शुरू किया जाए और इसे लेकर मुख्य सचिव एवं सचिव सचिवालय प्रशासन को भी पत्र लिखा है।
इस हालात में न केवल सचिवालय के भीतर कर्मचारियों की मनोबल प्रभावित हुआ है, बल्कि सार्वजनिक सेवाओं पर भी इसका असर पड़ सकता है, क्योंकि प्रशासनिक बदलावों की कमी से विभागों में कार्यकुशलता और जवाबदेही कमजोर होती है। जनता और कार्यकर्ताओं की नजर अब इस बात पर टिकी है कि सचिवालय प्रशासन कब और कैसे इस लंबित तबादला नीति को लागू करेगा।
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