Up Kiran, Digital Desk: आज बंदी छोड़ दिवस है, सिख धर्म में यह दिन बहुत खास माना जाता है. इस मौके पर आज हजारों की संख्या में श्रद्धालु अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में इकट्ठा हुए, पवित्र सरोवर में डुबकी लगाई और गुरु का आशीर्वाद लिया. पूरा हरमंदिर साहिब परिसर रौशनी, दीयों और फूलों से जगमगा रहा है, जिसे देखकर मन को एक अलग ही शांति मिलती है. सुबह से ही यहां भक्तों का तांता लगा हुआ है.
क्यों मनाया जाता है बंदी छोड़ दिवस?
यह दिन सिखों के छठे गुरु, श्री गुरु हरगोबिंद साहिब की याद में मनाया जाता है. बात उस समय की है जब मुगल बादशाह जहांगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को 52 हिंदू राजाओं के साथ ग्वालियर के किले में कैद कर लिया था. जहांगीर सिख धर्म के बढ़ते प्रभाव से डर गया था.
कहते हैं कि कुछ समय बाद जहांगीर बहुत बीमार पड़ गया. बहुत इलाज के बाद भी जब वह ठीक नहीं हुआ, तो सूफी संत मियां मीर ने उसे गुरु हरगोबिंद साहिब को रिहा करने की सलाह दी. गुरुजी अकेले रिहा होने को तैयार नहीं हुए. उन्होंने शर्त रखी कि वे तभी बाहर आएंगे जब उनके साथ कैद 52 राजाओं को भी छोड़ा जाएगा.
तब जहांगीर ने कहा कि जो भी राजा गुरुजी का पल्ला (चोले का सिरा) पकड़कर बाहर आ जाएगा, उसे आज़ाद कर दिया जाएगा. गुरुजी ने एक खास चोला सिलवाया, जिसकी 52 कलियां थीं. हर राजा ने एक-एक कली पकड़ी और इस तरह सब के सब किले से बाहर आ गए.
जब गुरु हरगोबिंद साहिब अमृतसर पहुंचे, तो लोगों ने घी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया. तभी से इस दिन को 'बंदी छोड़ दिवस' के रूप में मनाया जाने लगा. यह दिन हमें याद दिलाता है कि कैसे गुरुजी ने मानवता के लिए इतना बड़ा त्याग किया और दूसरों की आजादी के लिए अपनी आजादी दांव पर लगा दी.
यह सिर्फ एक त्योहार नहीं है, बल्कि गुरु हरगोबिंद साहिब के बलिदान और इंसानियत के लिए उनके योगदान को याद करने का दिन है.




