Up kiran,Digital Desk : अमेरिका में इस वक़्त H-1B वीज़ा को लेकर घमासान मचा हुआ है। वजह है राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का एक नया फ़रमान, जिसमें उन्होंने H-1B वीज़ा की फ़ीस बढ़ाकर सीधे 1 लाख डॉलर (क़रीब 83 लाख रुपये) कर दी है। अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या राष्ट्रपति का ऐसा करना गैरकानूनी है? यह सवाल सिर्फ़ हम और आप नहीं पूछ रहे, बल्कि अमेरिका के 20 राज्य खुद अदालत पहुँच गए हैं और ट्रंप के इस फ़ैसले को चुनौती दे रहे हैं।
अचानक क्यों भड़क गए अमेरिकी राज्य?
अमेरिका में स्कूल, अस्पताल और यूनिवर्सिटी जैसे कई संस्थान विदेशों से पढ़े-लिखे और कुशल लोगों को नौकरी पर रखने के लिए H-1B वीज़ा का इस्तेमाल करते हैं। अभी तक इस वीज़ा की फ़ीस कुछ हज़ार डॉलर हुआ करती थी, जिसे कंपनियाँ आसानी से भर देती थीं। लेकिन 1 लाख डॉलर की भारी-भरकम रक़म देना कई संस्थानों के बस की बात नहीं है।
इसीलिए कैलिफ़ोर्निया, न्यूयॉर्क, मैसाचुसेट्स और 17 अन्य राज्यों ने मिलकर ट्रंप प्रशासन के ख़िलाफ़ मुक़दमा दायर कर दिया है। उनका कहना है कि यह फ़ैसला पूरी तरह से गैरकानूनी है और इसे तुरंत रद्द किया जाना चाहिए।
कोर्ट में क्या दलीलें दी जा रही हैं?
केस की अगुवाई कर रहे कैलिफ़ोर्निया के अटॉर्नी जनरल रॉब बोंटा ने साफ़ कहा, “ट्रंप प्रशासन अपनी मर्ज़ी से क़ानून नहीं बना सकता।” राज्यों की मुख्य दलीलें ये हैं:
- राष्ट्रपति के अधिकार से बाहर: राज्यों का कहना है कि अमेरिकी कांग्रेस (जैसे भारत में संसद) ने राष्ट्रपति को इतनी ज़्यादा फ़ीस लगाने का अधिकार कभी नहीं दिया। यह फ़ैसला प्रशासनिक प्रक्रिया क़ानून और संविधान, दोनों का मज़ाक उड़ाता है।
- मकसद पैसा कमाना नहीं: वीज़ा की फ़ीस इसलिए ली जाती है ताकि वीज़ा सिस्टम को चलाने का ख़र्च निकल सके, न कि ख़ज़ाना भरने के लिए। 1 लाख डॉलर की फ़ीस इस सिद्धांत के ख़िलाफ़ है।
- कर्मचारियों की भारी कमी हो जाएगी: राज्यों ने चेतावनी दी है कि इस फ़ैसले से देश में डॉक्टर, टीचर और दूसरे ज़रूरी पेशेवरों की कमी और ज़्यादा बढ़ जाएगी। अमेरिका के कई स्कूल पहले से ही टीचरों की कमी से जूझ रहे हैं और स्वास्थ्य क्षेत्र का अनुमान है कि 2036 तक देश में 86,000 डॉक्टरों की कमी हो सकती है। ऐसे में यह फ़ैसला आग में घी डालने जैसा है।
कैलिफ़ोर्निया क्यों है सबसे आगे?
कैलिफ़ोर्निया दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और उसकी तरक्की में दुनियाभर से आए कुशल लोगों का बड़ा हाथ है। अटॉर्नी जनरल बोंटा ने कहा, “यह फ़ीस हमारे स्कूलों, अस्पतालों और ज़रूरी सेवाओं पर ज़बरदस्ती का बोझ डालेगी, जिसे हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।”
यह लड़ाई सिर्फ़ वीज़ा फ़ीस की नहीं है, बल्कि यह इस बात पर भी है कि क्या एक राष्ट्रपति अपनी ताक़त का इस्तेमाल करके क़ानून को अपने हिसाब से बदल सकता है। फ़िलहाल अमेरिका के 20 राज्यों ने तो कह दिया है – ऐसा नहीं हो सकता।

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