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Up Kiran, Digital Desk: 2011 में देशभर में गूंजा एक नारा जनलोकपाल चाहिए। भ्रष्टाचार के खिलाफ देश की जनता सड़कों पर उतर आई। इस आंदोलन ने एक उम्मीद जगाई, लेकिन जब सरकार ने उनकी मांगों को अनसुना किया, तो वही आंदोलन एक नई राजनीतिक ताकत का कारण बन गया। आम आदमी पार्टी की शुरुआत एक जनआंदोलन से नहीं, बल्कि जनता के भरोसे के टूटने से हुई।
“अगर कांग्रेस ने किया होता ये काम, तो आज कहानी कुछ और होती” – संजय सिंह का बड़ा खुलासा
राज्यसभा सांसद और आप नेता संजय सिंह ने इस पूरे घटनाक्रम की जड़ें खोलते हुए कहा कि अगर उस समय की केंद्र सरकार (कांग्रेस) ने समय पर लोकपाल कानून पास कर दिया होता, तो आंदोलन राजनीतिक दिशा में नहीं जाता।
उनके अनुसार, “हम सब लोग अपने-अपने कामों में लौट जाते, कोई संस्था चला रहा था, कोई समाज सेवा में लगा था, लेकिन सरकार की बेरुखी ने हमें राजनीतिक रास्ता चुनने पर मजबूर कर दिया।”
“जनता के साथ धोखा किया गया” – क्यों बनी ‘आप’ एक राजनीतिक पार्टी?
संजय सिंह ने स्पष्ट कहा कि कांग्रेस ने आंदोलन को गंभीरता से नहीं लिया। उन्होंने लोकपाल बिल पास करने का वादा किया था लेकिन निभाया नहीं। उन्होंने कहा कि सरकार ने मुद्दे को उलझा दिया, टालमटोल की नीति अपनाई और आंदोलन का मज़ाक बनाया। यही वो मोड़ था जहां आंदोलनकारी नेताओं ने फैसला लिया कि अब राजनीति में उतरकर ही बदलाव लाना पड़ेगा।
“अन्ना हजारे ने क्यों नहीं जॉइन की ‘आप’? संजय सिंह ने दी साफ वजह
जब अन्ना हजारे के पार्टी में शामिल न होने का सवाल उठा, तो संजय सिंह ने कहा, “हर व्यक्ति को अपनी राह चुनने का हक है। अन्ना जी का फैसला हम सबने स्वीकार किया। उन्होंने जो चुना, हम उसका सम्मान करते हैं।”
लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा, “अगर अन्ना जी ने उस वक्त राजनीति में आने का मन बना लिया होता, तो शायद लोग उन्हें ही प्रधानमंत्री बना देते। जो समर्थन और प्रेम उन्हें मिला, वो आज के नेताओं को नसीब नहीं।”