
Up Kiran, Digital Desk: दक्षिण कोरिया में एक महत्वपूर्ण न्यायिक फैसले में, देश की शीर्ष अदालत ने सरकार को 1979 के मार्शल लॉ के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन का शिकार हुए लोगों को मुआवजा देने का आदेश दिया है। यह फैसला राष्ट्रपति यून सुक-येओल के प्रशासन के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है, जो खुद कानून के शासन के प्रबल समर्थक रहे हैं।
यह मामला दक्षिण कोरिया के इतिहास के एक काले अध्याय से जुड़ा है – 12 दिसंबर, 1979 का सैन्य तख्तापलट। उस समय के शक्तिशाली सैन्य जनरल चून डू-ह्वान के नेतृत्व में सेना ने देश पर कब्जा कर लिया था। इस मार्शल लॉ के दौरान, नागरिकों के अधिकारों का व्यापक उल्लंघन हुआ। हजारों लोगों को बिना किसी उचित कारण के गिरफ्तार किया गया, कैद किया गया, और यातनाएं दी गईं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचला गया और राजनीतिक विरोधों को बलपूर्वक दबाया गया।
सियोल प्रशासनिक न्यायालय ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि राज्य 1979 के मार्शल लॉ के पीड़ितों को हुए नुकसान के लिए जिम्मेदार है। अदालत ने कहा कि मार्शल लॉ स्वयं अवैध था और इसने नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन किया। यह आदेश इन पीड़ितों और उनके परिवारों को वर्षों के संघर्ष के बाद न्याय दिलाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
यह फैसला न केवल पीड़ितों के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है, बल्कि यह दक्षिण कोरिया के लोकतंत्र के लिए भी एक मील का पत्थर है। यह याद दिलाता है कि भले ही समय बीत जाए, लेकिन ऐतिहासिक गलतियों और मानवाधिकारों के उल्लंघनों के लिए राज्य को जवाबदेह ठहराया जा सकता है।
राष्ट्रपति यून, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक अभियोजक के रूप में की थी और भ्रष्टाचार व अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए जाने जाते हैं, उनके प्रशासन के तहत यह फैसला आना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
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