
Up Kiran, Digital Desk: आज की दुनिया में, जहाँ पर्यावरणीय संकट और विभिन्न प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है, 'सेपियन फीलिंग' या मानव-केंद्रित पूर्वाग्रह की हमारी प्रवृत्ति पर गंभीरता से विचार करना आवश्यक हो गया है। यह वह सोच है जिसमें हम इंसान खुद को ब्रह्मांड के केंद्र में रखते हैं, यह मानते हुए कि ग्रह के संसाधन और अन्य सभी प्रजातियाँ केवल हमारे उपयोग और लाभ के लिए हैं। यह दृष्टिकोण, हालांकि हमें विकास की राह पर आगे बढ़ा सकता है, लेकिन इसने हमें एक गहरे पारिस्थितिक असंतुलन की ओर धकेल दिया है।
मानव-केंद्रित सोच का जाल: मानव-केंद्रितता (Anthropocentrism) हमें यह विश्वास दिलाती है कि हम अन्य सभी जीवों से श्रेष्ठ हैं और हमारे पास प्रकृति का शोषण करने का पूर्ण अधिकार है। यह सोच अक्सर पर्यावरणीय क्षरण, प्रदूषण और जैव विविधता के नुकसान का कारण बनती है। हम भूल जाते हैं कि हम जिस दुनिया में रहते हैं, वह एक जटिल सहजीवी (symbiotic) तंत्र है, जहाँ हर जीव, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, अपने पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हमारे अस्तित्व के लिए भी यह संतुलन अपरिहार्य है।
सहजीवी दुनिया की पुकार: एक सहजीवी दुनिया का अर्थ है परस्पर निर्भरता। पेड़ हमें ऑक्सीजन देते हैं, मिट्टी सूक्ष्मजीवों के बिना उपजाऊ नहीं हो सकती, और परागणक (pollinators) हमारी फसलों को सुनिश्चित करते हैं। इस जटिल वेब में मानव सिर्फ एक धागा है, और यदि हम इस धागे को बहुत अधिक खींचते हैं, तो पूरा ताना-बाना बिगड़ सकता है। जलवायु परिवर्तन, महामारियां, और संसाधनों की कमी जैसे मुद्दे इसी असंतुलन के प्रत्यक्ष परिणाम हैं।
'प्रजातिवाद' को चुनौती: सेपियन फीलिंग' अक्सर 'प्रजातिवाद' (Speciesism) को जन्म देती है, जहाँ हम अन्य प्रजातियों के दर्द और अस्तित्व को अनदेखा कर देते हैं, केवल अपनी प्रजाति की भलाई पर ध्यान केंद्रित करते हैं। लेकिन हमें यह समझना होगा कि हमारा स्वास्थ्य ग्रह के स्वास्थ्य से अविभाज्य रूप से जुड़ा हुआ है। 'एक ग्रह, एक स्वास्थ्य' (One Health) का दृष्टिकोण यही बताता है कि मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्वास्थ्य एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं।
बदलती सोच की आवश्यकता: हमें अपनी सोच में बदलाव लाना होगा। हमें मानव-केंद्रित पूर्वाग्रह से बाहर निकलकर एक ऐसे दृष्टिकोण को अपनाना होगा जो सभी जीवन रूपों के लिए समानुभूति और सम्मान पर आधारित हो। यह केवल पर्यावरण को बचाने के लिए नहीं है, बल्कि हमारे अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए भी आवश्यक है। जब तक हम यह महसूस नहीं करेंगे कि हम भी इस सहजीवी दुनिया का एक हिस्सा हैं, तब तक हम वास्तविक संतुलन और स्थिरता हासिल नहीं कर पाएंगे।
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