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Up Kiran, Digital Desk: हिंदू धर्म में गाय को 'माता' का दर्जा प्राप्त है, और इसी श्रद्धा और स्नेह को समर्पित है 'बछ बारस' का पवित्र पर्व। यह विशेष दिन भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है, जो जन्माष्टमी के कुछ दिनों बाद ही आता है। 2025 में, यह शुभ पर्व 20 अगस्त को मनाया जाएगा। बछ बारस, जिसे कुछ क्षेत्रों में 'वत्स बारस' या 'गोवत्स द्वादशी' के नाम से भी जाना जाता है, मुख्य रूप से बच्चों की दीर्घायु, स्वास्थ्य और परिवार की खुशहाली की कामना के लिए मनाया जाता है। यह पर्व गौमाता और उसके बछड़े के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का भी एक सुंदर माध्यम है।

बछ बारस का महत्व: परंपराएं और मान्यताएं

'बछ' का अर्थ है बछड़ा और 'बारस' का अर्थ है द्वादशी तिथि। इस दिन महिलाएं अपने बच्चों की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। ऐसा माना जाता है कि गौमाता की पूजा करने से भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है, क्योंकि वे स्वयं एक गोपालक थे और गायों से उनका गहरा लगाव था।

गौमाता की पवित्रता: हिंदू धर्मग्रंथों में गाय को पवित्र माना गया है, जिसमें सभी देवी-देवता और पवित्र नदियां निवास करती हैं[ । गौमाता के दूध को अमृत तुल्य माना जाता है, जो जीवनदायिनी शक्ति प्रदान करता है।

बच्चों के लिए प्रार्थना: इस व्रत को रखने का मुख्य उद्देश्य बच्चों को बुरी नजर, बीमारियों और कष्टों से बचाना और उनके जीवन में सुख-शांति बनाए रखना है

समृद्धि का प्रतीक: गौमाता की पूजा परिवार में सुख, समृद्धि और खुशहाली लाने वाली मानी जाती है।

क्षेत्रीय विविधता: यह पर्व राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में विशेष उत्साह से मनाया जाता है। गुजरात में इसे 'वाघ बारस' के नाम से भी जाना जाता है, जो वित्तीय ऋण चुकाने और खातों को व्यवस्थित करने का भी प्रतीक है।

2025 में बछ बारस की तिथि और शुभ मुहूर्त

द्वादशी तिथि प्रारंभ: 19 अगस्त 2025, मंगलवार, दोपहर 3:32 बजे

द्वादशी तिथि समाप्त: 20 अगस्त 2025, बुधवार, दोपहर 1:58 बजे

मुख्य व्रत का दिन: 20 अगस्त 2025, बुधवार

बछ बारस की पूजा विधि

इस पावन दिन की पूजा विधि सरल लेकिन अत्यंत फलदायी है:

स्नान और नवीन वस्त्र: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।

गोशाला का निर्माण: आंगन में गोबर से एक छोटा सा तालाब (कुंड) बनाएं और उसे फूलों से सजाएं। इसमें कच्चा दूध और जल भरें, जो पवित्रता और उर्वरता का प्रतीक है।

गौ-बछड़े का पूजन: एक जीवित गाय और उसके बछड़े को स्नान कराएं, सजाएं और उनके माथे पर रोली का तिलक लगाएं। यदि संभव न हो तो मिट्टी या तस्वीर से बने गाय-बछड़े की भी पूजा की जा सकती है।

भोग और प्रसाद: गौमाता को हरे चारे, गुड़, गेहूं या बाजरे की रोटी और दूध का भोग लगाएं।

व्रत कथा का पाठ: इस दिन बछ बारस की व्रत कथा सुनी या पढ़ी जाती है।

भोजन संबंधी नियम: इस दिन गेहूं और गेहूं से बने उत्पादों से परहेज किया जाता है। इसके बजाय, बाजरे की रोटी, अंकुरित अनाज और अन्य पारंपरिक शाकाहारी भोजन तैयार किया जाता है। गाय के दूध और उससे बने उत्पादों का सेवन भी वर्जित है; भैंस या बकरी के दूध का प्रयोग किया जा सकता है।

बायना निकालना: कई क्षेत्रों में, व्रत रखने वाली महिलाएं अपने साथ उबले हुए चने, मोट, बाजरा और एक रुपया रखकर पूजा करती हैं और इसे अपनी सास को देती हैं, जिसे 'बायना' कहते हैं

बछ बारस का आध्यात्मिक लाभ

इस व्रत को करने से न केवल बच्चों का स्वास्थ्य और दीर्घायु सुनिश्चित होता है, बल्कि परिवार में सुख, शांति और समृद्धि भी बनी रहती है। यह पर्व गौसेवा और कृतज्ञता की भावना को भी जागृत करता है, जो हिंदू संस्कृति का अभिन्न अंग है[1][3][9]।

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