Up Kiran, Digital Desk: क्या आपने कभी सोचा है कि हज़ारों साल पहले कैसे किसी ख़ास व्रत की शुरुआत हुई होगी? हिन्दू धर्म में एकादशी के व्रतों का अपना एक अलग ही महत्व है और इन सब एकादशियों की जननी मानी जाती है उत्पन्ना एकादशी. इस दिन की अपनी एक बेहद रोमांचक कहानी है, जो हमें भगवान विष्णु की माया और धर्म की रक्षा करने वाली एक अद्भुत शक्ति से परिचित कराती है. अगर आप एकादशी का व्रत शुरू करने की सोच रहे हैं या बस सनातन धर्म की पौराणिक कथाओं में रुचि रखते हैं, तो मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की ये एकादशी आपके लिए ख़ास है. आइए, जानते हैं इस ख़ास दिन की व्रत कथा, इसका शुभ मुहूर्त और पारण का समय.
उत्पन्ना एकादशी 2025: तारीख और समय
इस साल, यानी 2025 में, उत्पन्ना एकादशी का पावन व्रत शनिवार, 15 नवंबर को मनाया जाएगा. एकादशी तिथि की शुरुआत 15 नवंबर, 2025 को सुबह 12 बजकर 49 मिनट पर होगी और इसका समापन 16 नवंबर, 2025 को तड़के 2 बजकर 37 मिनट पर होगा. चूंकि सूर्योदय के समय (उदय तिथि) 15 नवंबर को एकादशी होगी, इसलिए व्रत इसी दिन रखा जाएगा. व्रत खोलने (पारण) का समय 16 नवंबर, रविवार को दोपहर 1 बजे से लेकर शाम 3 बजकर 18 मिनट के बीच रहेगा.
उत्पन्ना एकादशी की अद्भुत व्रत कथा
प्राचीन काल की बात है. एक समय पृथ्वी पर एक अत्यंत बलशाली और अहंकारी राक्षस था, जिसका नाम 'मुर' था. मुर राक्षस ने अपनी ताक़त से सभी देवी-देवताओं को पराजित कर दिया था और उन्हें स्वर्गलोक से बाहर निकाल दिया था. उसके अत्याचार इतने बढ़ गए थे कि कोई भी उसे हराने में सक्षम नहीं था. देवतागण त्रस्त होकर भगवान शिव और फिर अंत में क्षीरसागर में सोए हुए भगवान विष्णु की शरण में गए.
भगवान विष्णु जब निद्रा से जागे, तो उन्होंने देवताओं का दुख सुना और मुर से युद्ध करने का संकल्प लिया. भगवान और मुर के बीच वर्षों तक भयंकर युद्ध चला. मुर बहुत ही मायावी और शक्तिशाली था, जिसे हराना आसान नहीं था. युद्ध लड़ते-लड़ते भगवान विष्णु थक गए और बद्रिकाश्रम की गुफा में जाकर विश्राम करने लगे. राक्षस मुर ने भगवान को सोया हुआ देखा, तो सोचा कि यही सही मौका है उनका वध करने का. जैसे ही वह भगवान विष्णु पर प्रहार करने को आगे बढ़ा, तभी भगवान विष्णु के शरीर से एक अत्यंत दिव्य और तेजस्वी शक्ति प्रकट हुई.
यह शक्ति स्त्री रूप में थी और इतनी प्रचंड थी कि उसने क्षणभर में ही राक्षस मुर का वध कर दिया. जब भगवान विष्णु निद्रा से जागे, तो उन्होंने उस तेजस्वी शक्ति से पूछा कि तुम कौन हो? तब उस देवी ने बताया कि वह उनके ही शरीर से प्रकट हुई है, ताकि उनकी रक्षा कर सके और धर्म को बचा सके. भगवान विष्णु यह देखकर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उस देवी को 'एकादशी' नाम दिया. भगवान ने उन्हें यह वरदान दिया कि जो कोई भी मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की इस एकादशी का व्रत रखेगा और तुम्हारा पूजन करेगा, उसके सारे पाप नष्ट हो जाएंगे, उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी और जीवन में सुख-समृद्धि मिलेगी.
इसी कारण से, उत्पन्ना एकादशी को सभी एकादशियों का 'जन्म' माना जाता है. कहते हैं, जो लोग सालभर एकादशी का व्रत रखने की शुरुआत करना चाहते हैं, उनके लिए यह दिन सबसे शुभ है. सच्चे मन से व्रत और पूजा करने पर भगवान विष्णु और देवी एकादशी दोनों की कृपा प्राप्त होती है.
कैसे करें इस दिन व्रत?
उत्पन्ना एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लें. इस दिन पूरे श्रद्धा भाव से भगवान विष्णु और देवी एकादशी की पूजा करनी चाहिए. आप चाहें तो निर्जला व्रत भी कर सकते हैं या फलाहार ग्रहण करके भी व्रत का पालन कर सकते हैं. भगवान को पीला चंदन, पीले फूल, तुलसी दल, धूप-दीप अर्पित करें और विष्णु सहस्त्रनाम या 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें. गरीबों और ज़रूरतमंदों को दान करना भी इस दिन बहुत शुभ माना जाता है.
यह व्रत हमें यह संदेश देता है कि धर्म की रक्षा के लिए कभी-कभी हमारी भीतर की शक्ति ही प्रकट होती है. उत्पन्ना एकादशी का व्रत हमें जीवन में सही कर्म करने और भक्ति मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है.
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