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Up Kiran, Digital Desk: बिहार की सियासत एक बार फिर गरमा गई है, लेकिन इस बार बहस सत्ता, विकास या कानून-व्यवस्था को लेकर नहीं, बल्कि शिक्षा और योग्यता के मुद्दे पर हो रही है। जनसुराज अभियान के सूत्रधार और रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर ने राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव को न केवल खुली चुनौती दी है, बल्कि उनकी शिक्षा को लेकर तीखा तंज भी कसा है। यह हमला व्यक्तिगत से अधिक वैचारिक प्रतीत होता है, जिसमें बिहार की राजनीति में योग्यता, जवाबदेही और पारदर्शिता की मांग छिपी है।
“मैट्रिक पास कर लीजिए, जनसुराज पार्टी वापस ले लूंगा”
प्रशांत किशोर ने पटना में ‘सत्ता सम्मेलन बिहार’ के दौरान तेजस्वी यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि यदि तेजस्वी मैट्रिक की परीक्षा पास कर लें, तो वे अपनी जनसुराज पार्टी को समाप्त कर देंगे और उन्हें अपना नेता मान लेंगे। उन्होंने कहा, “जितनी कोचिंग करनी हो कर लीजिए, जितना ट्यूशन करना हो कर लीजिए। अगर आप मैट्रिक पास कर लेते हैं, तो मैं आपकी लीडरशिप स्वीकार कर लूंगा और आपके प्रचार में लग जाऊंगा।”
यह बात सुनने में मज़ाक लग सकती है, लेकिन इसके पीछे एक गंभीर सवाल छिपा है—क्या किसी राज्य का नेतृत्व केवल वंश के आधार पर तय होना चाहिए, या फिर उसमें न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता, ज़मीनी समझ और जवाबदेही भी मायने रखती है?
“शिक्षा के प्रति रवैया ही बहुत कुछ कहता है”
तेजस्वी यादव की औपचारिक शिक्षा पर टिप्पणी करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि उनके पास नौंवी कक्षा का प्रमाणपत्र भी नहीं है, जबकि वे दिल्ली के प्रतिष्ठित डीपीएस आरकेपुरम स्कूल में पढ़ते थे। उन्होंने कहा, “क्रिकेट के लिए पढ़ाई छोड़ी, यह बात समझ आती है। लेकिन क्रिकेट छोड़े दो दशक हो गए। अब क्या वजह है कि आप फिर से पढ़ाई नहीं कर सके? आम घरों की महिलाएं भी शादी के बाद बीए और एमए कर रही हैं। यह शिक्षा के प्रति सम्मान दर्शाता है।”
उन्होंने तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री कामराज का उदाहरण देते हुए यह भी स्पष्ट किया कि शिक्षा का अभाव तब मायने नहीं रखता जब व्यक्ति सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों की वजह से पढ़ नहीं सका हो, लेकिन जब अवसर होने के बावजूद पढ़ाई को नजरअंदाज किया जाए, तो यह सोच को दर्शाता है।
नौकरी के आंकड़ों पर भी उठाया सवाल
प्रशांत किशोर ने तेजस्वी यादव द्वारा दी गई सरकारी नौकरियों के दावे को भी चुनौती दी। उन्होंने कहा कि यदि आरजेडी सरकार ने 5 लाख लोगों को रोजगार दिया है, तो उन सभी नियुक्त लोगों की सूची सार्वजनिक की जाए। “बिहार में करीब सवा 23 लाख सरकारी कर्मी हैं, संविदा और स्थायी मिलाकर। अगर आप कहते हैं कि आपने 5 लाख को नौकरी दी, तो उनके नाम और पता सार्वजनिक कीजिए। जनता को भी तो जानने का हक है कि वो कौन लोग हैं।”
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