img

Up Kiran, Digital Desk: जैसे-जैसे बिहार में विधानसभा चुनाव का समय नज़दीक आ रहा है, वैसे-वैसे सियासी हलचलें तेज़ होती जा रही हैं। इस बार विपक्ष एक नए तरीके से मतदाताओं के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है—'वोटर अधिकार यात्रा' के ज़रिए। लेकिन यह यात्रा केवल एक चुनावी रणनीति नहीं, बल्कि मताधिकार से जुड़ी चिंताओं और जन-जागरण की एक बड़ी मुहिम के रूप में देखी जा रही है।

वोटरों के अधिकारों पर फोकस

इस यात्रा का मूल मकसद आम जनता, खासकर पिछड़े और अल्पसंख्यक तबकों को यह बताना है कि उनके वोट का अधिकार कितना अहम है और कैसे यह अधिकार खतरे में पड़ सकता है। विपक्षी गठबंधन का दावा है कि चुनाव आयोग द्वारा चलाई गई विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के दौरान लाखों योग्य मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए गए हैं। कांग्रेस के पवन खेड़ा ने यह आंकड़ा 65 लाख तक बताया है।

विपक्ष की ओर से यह गंभीर आरोप लगाया गया है कि यह सब सत्ता पक्ष और चुनाव आयोग की मिलीभगत से हो रहा है—जिसे वे 'वोट की चोरी' करार दे रहे हैं। इससे लोकतंत्र की नींव पर सीधा असर पड़ सकता है, क्योंकि एक बड़ी आबादी मतदान से वंचित हो सकती है।

यात्रा कहां-कहां से गुजरेगी?

'वोटर अधिकार यात्रा' की शुरुआत 17 अगस्त को सासाराम से हुई थी और यह 1 सितंबर को पटना के गांधी मैदान में समाप्त होगी। इस दौरान यात्रा 23 ज़िलों से होकर गुजरेगी, जिनमें गया, औरंगाबाद, भागलपुर, दरभंगा, मधुबनी, अररिया, कटिहार, नवादा, सीवान, गोपालगंज, छपरा जैसे ज़िले शामिल हैं। करीब 1300 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए यह यात्रा जनमानस से सीधा संवाद स्थापित कर रही है।

नेतृत्व और विपक्षी एकता

राहुल गांधी और तेजस्वी यादव इस यात्रा के मुख्य चेहरे हैं, जिनके साथ कांग्रेस, राजद, वाम दलों और इंडिया गठबंधन के अन्य नेता भी शामिल हैं। यह न केवल मतदाता जागरूकता का प्रयास है, बल्कि विपक्षी दलों की एकता का भी सार्वजनिक प्रदर्शन है। नेताओं का कहना है कि वे इस यात्रा के ज़रिए हर उस नागरिक तक पहुंचना चाहते हैं जिसे लग रहा है कि उसका नाम बिना कारण वोटर लिस्ट से हटाया गया है।

क्या कहता है सत्ता पक्ष?

जहां विपक्ष इस अभियान को 'संविधान की रक्षा' की लड़ाई कह रहा है, वहीं सत्ता पक्ष इसे केवल एक राजनैतिक ड्रामा मान रहा है। बीजेपी नेता अश्विनी चौबे ने इसे व्यंग्य में 'शवयात्रा' बताया, जबकि संजय सरावगी ने तंज कसते हुए कहा कि यह यात्रा विपक्ष के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री उम्मीदवार तय करने की कवायद है।

SIR प्रक्रिया पर सवाल

SIR यानी Special Intensive Revision प्रक्रिया का मकसद मतदाता सूची को अपडेट करना था, लेकिन विपक्ष का कहना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शी नहीं रही। आरोप हैं कि सत्यापन के बिना ही नाम हटाए गए, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल खड़े हो रहे हैं। कई लोग पहली बार वोट डालने वाले थे, पर अब उनका नाम ही सूची में नहीं है।

--Advertisement--