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Up Kiran, Digital Desk: पाकिस्तान सरकार ने जून 2025 में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को 2026 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया। दावा किया गया कि भारत-पाकिस्तान के बीच मई में हुए सैन्य तनाव को खत्म करने में ट्रंप की ‘डिप्लोमैटिक स्किल्स’ और ‘लीडरशिप’ ने बड़ी भूमिका निभाई। यह एलान 21 जून को इस्लामाबाद से किया गया। लेकिन असली सवाल यह है—क्या यह कूटनीतिक पहल थी या अपनी असफलताओं को छिपाने का एक नया तरीका?

भारत को झटका या पाकिस्तान का प्रोपेगेंडा?

पाक प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ट्रंप को नोबेल के लिए नामांकित करते हुए यह कहा कि उन्होंने भारत के साथ युद्ध की स्थिति को टाल दिया। लेकिन भारतीय अधिकारी इस दावे को पूरी तरह खारिज कर चुके हैं। भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने साफ किया कि पाकिस्तान की सेना ने खुद संघर्षविराम के लिए संपर्क साधा था। अमेरिका की इसमें कोई भूमिका नहीं थी।

युद्ध की आहट और ट्रंप की टाइमिंग

पाकिस्तानी सेना और अमेरिका के बीच जून 2025 में हुई हाई-लेवल मीटिंग्स ने इस फैसले को जन्म दिया। इस दौरान पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष असीम मुनीर और डोनाल्ड ट्रंप के बीच कई अहम मुद्दों पर बातचीत हुई। हालांकि उसी समय अमेरिका की ओर से ईरान पर हमला भी हुआ था, जिससे ट्रंप की ‘शांति की छवि’ पर सवाल उठने लगे।

भारत का दो टूक जवाब: "बाहरी दबाव नहीं था"

भारत की ओर से लगातार यही संदेश गया है कि सैन्य कार्रवाई तब रोकी गई जब सभी जरूरी रणनीतिक लक्ष्य पूरे हो चुके थे। 28 जुलाई को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी स्पष्ट किया कि किसी बाहरी दबाव या हस्तक्षेप की वजह से ऑपरेशन नहीं रोका गया। इसका मतलब साफ है कि ट्रंप की भूमिका को भारत गंभीरता से नहीं ले रहा।

ट्रंप को क्रेडिट क्यों? जनता में उठे सवाल

पाकिस्तान के इस कदम को लेकर खुद देश के अंदर भी आलोचना हो रही है। कई लोग मानते हैं कि ये सिर्फ एक ‘फेस सेविंग’ एटेम्प्ट है ताकि जनता के सामने भारत से मिली हार को कमतर दिखाया जा सके। नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन से यह संदेश देने की कोशिश हो रही है कि पाकिस्तान की सरकार ने युद्ध टालने में अहम भूमिका निभाई, जबकि सच्चाई इससे उलट दिखती है।