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Up Kiran, Digital Desk: अक्टूबर-नवंबर आते ही दिल्ली-एनसीआर की हवा में जो घुला है, उसे सिर्फ़ धुंध या कोहरा समझने की ग़लती मत कीजिएगा। यह असल में एक 'अदृश्य महामारी' (Invisible Epidemic) है, एक ऐसा ख़तरनाक ज़हर जो हर साँस के साथ हमारे शरीर में घुस रहा है और हमें अंदर से खोखला कर रहा है।

सर्दियों की सुबह की यह सफ़ेद चादर असल में प्रदूषण के छोटे-छोटे कणों (PM2.5 और PM10), ज़हरीली गैसों और धूल का एक ऐसा कॉकटेल है जो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, किसी को नहीं बख्श रहा। हालत इतनी ख़राब हो चुकी है कि दिल्ली में साँस लेना सिगरेट के कई पैकेट पीने के बराबर माना जा रहा है।

क्यों दिल्ली हर साल बन जाती है  गैस चैंबर 

  1. इस ज़हरीली हवा के पीछे कोई एक नहीं, बल्कि कई खलनायक  हैं जो एक साथ मिलकर दिल्ली का दम घोंट रहे हैं 
  2. पड़ोसी राज्यों से आता धुआँ:  पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में इस मौसम में जलाई जाने वाली पराली का धुआँ हवा के साथ बहकर दिल्ली-एनसीआर को एक गैस चैंबर में बदल देता है। यह इस समस्या का सबसे बड़ा और तात्कालिक कारण है।
  3. गाड़ियों का ज़हर: दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती लाखों गाड़ियाँ हर दिन हवा में टन-भर के ज़हरीले धुएँ का छिड़काव करती हैं।
  4. मौसम की मार: सर्दियों में हवा की रफ़्तार बहुत कम हो जाती है और नमी बढ़ जाती है। इससे ये ज़हरीले कण कहीं उड़कर जा नहीं पाते और हवा में ही नीचे फंसकर रह जाते हैं, जिसे 'स्मॉग' कहते हैं।
  5. निर्माण की धूल: लगातार चलते कंस्ट्रक्शन के काम से उड़ने वाली धूल भी इस प्रदूषण को और ज़्यादा ख़तरनाक बना देती है।

यह सिर्फ़ खाँसी-ज़ुकाम नहीं, एक जानलेवा ख़तरा है!

इसे हल्की-फुल्की एलर्जी या "मौसम बदल रहा है" वाली खाँसी समझने की भूल न करें। यह ज़हरीली हवा एक साइलेंट किलर है जो आपके शरीर पर हमला कर रही है:

  • फेफड़ों का कैंसर: लंबे समय तक ऐसे माहौल में साँस लेना फेफड़ों के कैंसर के ख़तरे को कई गुना बढ़ा देता है।
  • बच्चों के लिए सबसे बड़ा दुश्मन: यह प्रदूषण बच्चों के फेफड़ों के विकास को हमेशा के लिए रोक सकता है और उन्हें अस्थमा जैसी लाइलाज बीमारियाँ दे सकता है।
  • दिल के दौरे और स्ट्रोक: ये ज़हरीले कण ख़ून में मिलकर उसे गाढ़ा कर देते हैं, जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ता है और हार्ट अटैक या ब्रेन स्ट्रोक का ख़तरा भी बढ़ जाता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य पर असर: रिसर्च से यह भी पता चला  कि वायु प्रदूषण डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसी मानसिक बीमारियों को भी बढ़ा सकता है।

आप कैसे बनें इस 'महामारी' से बचने वाले 'योद्धा'?

सरकारें जब तक कोई ठोस क़दम उठाएं, तब तक आपको अपनी और अपने परिवार की लड़ाई ख़ुद लड़नी होगी:

  • मास्क ही है वैक्सीन: जब भी घर से बाहर निकलें, एक अच्छा N95 मास्क ज़रूर पहनें। कपड़े का मास्क इस ज़हर से बचाने में नाकाफी है।
  • सुबह की सैर को कहें 'ना': जब तक हवा साफ़ न हो, सुबह या शाम को बाहर टहलने या दौड़ने जाने से बचें, क्योंकि उस समय प्रदूषण सबसे ज़्यादा होता है।
  • घर में लगाएं 'सुरक्षा कवच': अगर संभव हो तो अपने घर में एक अच्छा एयर प्यूरीफायर (Air Purifier) लगवाएं, ख़ासकर बच्चों और बुज़ुर्गों के कमरे में।
  • इम्युनिटी को बनाएं हथियार: अपनी डाइट में विटामिन-C (नींबू, आंवला), अदरक और गुड़ जैसी चीज़ों को शामिल करें जो आपकी इम्युनिटी को मज़बूत करें।

यह सिर्फ़ एक मौसम की बात नहीं ਹੈ, यह हमारी और आपकी ज़िंदगी का सवाल है। जब तक हम सब मिलकर इस 'अदृश्य महामारी' के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाएंगे और अपनी आदतें नहीं बदलेंगे, तब तक दिल्ली हर साल यूँ ही घुटती रहेगी।