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Up kiran,Digital Desk : थाईलैंड की राजनीति में एक बहुत बड़ा भूचाल आ गया है। प्रधानमंत्री अनुतिन चर्नवीराकुल, जो सिर्फ तीन महीने पहले ही सत्ता में आए थे, ने संसद को भंग कर दिया है। उन्हें इसके लिए शाही मंजूरी भी मिल गई है, और इसके साथ ही देश में अगले साल की शुरुआत में आम चुनाव का रास्ता साफ हो गया है।

लेकिन सवाल यह है कि सिर्फ 3 महीने में ऐसा क्या हुआ कि प्रधानमंत्री को अपनी कुर्सी छोड़कर चुनाव में जाना पड़ रहा है, वह भी तब, जब देश पड़ोसी कंबोडिया के साथ एक गंभीर सीमा विवाद में उलझा हुआ है?

सत्ता पाने के लिए किया गया एक वादा, जो बना गले की फांस

इस पूरी कहानी की जड़ एक राजनीतिक वादा है। अनुतिन चर्नवीराकुल जब सितंबर में प्रधानमंत्री बने थे, तो उनके पास पूरा बहुमत नहीं था। उन्हें मुख्य विपक्षी पार्टी 'पीपल्स पार्टी' ने इस शर्त पर समर्थन दिया था कि वह चार महीने के अंदर संसद भंग कर देंगे और एक नया, ज़्यादा लोकतांत्रिक संविधान बनाने के लिए जनमत संग्रह कराएंगे।

और फिर हो गया 'खेल'

सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन संविधान बदलने के मुद्दे पर आकर बात फंस गई। हुआ यह कि अनुतिन की पार्टी 'भूमजथाई' ने संसद में सेना-समर्थित पुराने संविधान के एक नियम को बनाए रखने के पक्ष में वोट कर दिया। इस नियम से सीनेट (ऊपरी सदन) को ज़्यादा ताकत मिलती है।

पीपल्स पार्टी ने इसे एक बड़ा धोखा माना और गुस्से में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की धमकी दे डाली। अपनी सरकार को गिरते देख, प्रधानमंत्री अनुतिन के पास संसद भंग करके जनता के बीच जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा।

एक तरफ जंग, दूसरी तरफ राजनीतिक अनिश्चितता

प्रधानमंत्री का यह फैसला ऐसे समय में आया  जब थाईलैंड का कंबोडिया के साथ सीमा पर तनाव चरम पर है। इस हफ्ते हुई झड़पों में दो दर्जन के करीब लोग मारे जा चुके हैं और लाखों लोग अपने घर छोड़ने पर मजबूर हुए हैं। ऐसे में देश को एक स्थिर सरकार की ज़रूरत थी, लेकिन अब वह एक और राजनीतिक अनिश्चितता में फंस गया है।

आगे क्या होगा?

  • अनुतिन चर्नवीराकुल अब सिर्फ एक 'कार्यवाहक' प्रधानमंत्री रहेंगे, जिनके पास बहुत सीमित अधिकार होंगे।
  • देश में 45 से 60 दिनों के भीतर चुनाव कराए जाएंगे।
  • पीपल्स पार्टी ने साफ कर दिया है कि वह विपक्ष में ही रहेगी। इसका मतलब  कि चुनाव के बाद बनने वाली नई सरकार भी एक कमजोर और अल्पमत की सरकार हो सकती है, जिससे राजनीतिक अस्थिरता का यह दौर शायद लंबा चले।

कुल मिलाकर, थाईलैंड इस वक्त एक दोराहे पर खड़ा है - एक तरफ बाहरी दुश्मन से खतरा  और दूसरी तरफ घर के अंदर ही राजनीतिक लड़ाई छिड़ी हुई है।