img

Up Kiran, Digital Desk: बिहार की सियासत में इन दिनों एक नई हलचल देखने को मिल रही है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पर दो अलग-अलग मतदाता पहचान पत्र रखने का आरोप लगने के बाद राजनीतिक बयानबाज़ी तेज हो गई है। जहां सत्ताधारी एनडीए इसे गंभीर अपराध करार दे रहा है, वहीं इस विवाद ने चुनावी प्रणाली की पारदर्शिता और प्रशासनिक सटीकता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

क्या दो वोटर कार्ड रखना तकनीकी चूक है या जानबूझकर की गई गलती?

मामला तब सुर्खियों में आया जब तेजस्वी यादव ने दावा किया कि उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है। उन्होंने इसको लेकर चुनाव आयोग पर पक्षपातपूर्ण रवैये का आरोप लगाया। लेकिन जब उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दूसरा EPIC नंबर सार्वजनिक किया, तो मामला उलटा पड़ गया। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि उनका नाम पहले से ही दीघा विधानसभा क्षेत्र में पंजीकृत है और जो दूसरा EPIC नंबर उन्होंने बताया, वह अमान्य है।

यह खुलासा होते ही विरोधी दलों ने मौके को हथियार बना लिया और तेजस्वी पर हमला बोल दिया।

राजनीतिक मोर्चे पर हमलावर हुई एनडीए

जेडीयू, बीजेपी, लोजपा और अन्य एनडीए घटक दलों ने संयुक्त प्रेस वार्ता में तेजस्वी यादव पर तीखे आरोप लगाए। जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि यदि किसी नेता को अपनी पहचान को लेकर ही भ्रम है, तो वह जनता का नेतृत्व कैसे करेगा? उन्होंने इसे "एपिक घोटाला" बताते हुए लोकतांत्रिक मूल्यों की अवमानना करार दिया।

बीजेपी प्रवक्ता अजय आलोक ने तो यहां तक कह दिया कि दो वोटर कार्ड रखने पर सीधी जेल का प्रावधान है और तेजस्वी को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। वहीं लोजपा प्रवक्ता ने गिरफ्तारी और सार्वजनिक माफी की मांग कर दी। कुछ नेताओं ने पटना के जिलाधिकारी से इस पर कार्रवाई की अपील भी की।

कानून क्या कहता है?

चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार, एक नागरिक केवल एक ही निर्वाचन क्षेत्र में वोटर के रूप में पंजीकृत हो सकता है। यदि किसी के पास दो अलग-अलग EPIC नंबर हैं, तो यह भारतीय दंड संहिता की धारा 17 और 18 के तहत दंडनीय अपराध माना जाता है। इस स्थिति में प्रथम दृष्टया FIR दर्ज की जा सकती है। हालांकि, यह भी देखा जाना जरूरी है कि यह गलती सिस्टम से जुड़ी कोई त्रुटि है या किसी की ओर से जानबूझकर किया गया फर्जीवाड़ा।