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Up Kiran Digital Desk: बिहार की सियासत एक बार फिर करवट लेती नजर आ रही है और इस बार फोकस है सुशासन बाबू के गढ़ कहे जाने वाले नालंदा जनपद के अस्थावां विधानसभा क्षेत्र पर। जहां कभी जदयू की जीत तय मानी जाती थी, वहां अब कई दल नए सामाजिक समीकरणों और रणनीतियों के साथ ताल ठोकने को तैयार हैं। आम जनता के बीच इस बार यह चर्चा का बड़ा मुद्दा है कि क्या लंबे समय से चली आ रही एकतरफा राजनीति को कोई चुनौती दे पाएगा?
जनता की बदलती सोच और नए चेहरे
अस्थावां, जिसे अब तक जदयू के सुरक्षित किले की तरह देखा जाता था, वहां अब मतदाता भी विकल्पों पर गंभीरता से विचार करने लगे हैं। चुनावी इतिहास बताता है कि इस क्षेत्र में जनता ने कभी निर्दलीय उम्मीदवारों को भी बार-बार जीत दिलाई है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या यहां की जनता इस बार फिर किसी गैर-स्थापित चेहरे को मौका दे सकती है?
नीतीश के खिलाफ बनते सियासी मोर्चे
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव यहां की राजनीतिक बुनावट को बदलने के इरादे से एक नए जातीय समीकरण पर दांव खेल सकते हैं। जहां जदयू का कुर्मी वोट बेस स्थायी माना जाता है, वहीं राजद इस बार यादव, मुस्लिम और भूमिहार समुदाय के बीच गठजोड़ बनाकर चुनावी गणित को पलटने की कोशिश में है। खास बात यह है कि भूमिहार वर्ग की हिस्सेदारी होने के बावजूद उन्हें अक्सर यहां प्रतिनिधित्व नहीं मिला — राजद इसी खाली स्थान को भरने का प्रयास कर सकता है।
‘छोटू मुखिया’ बन सकते हैं भूमिहार समुदाय की आवाज
इस बार आरजेडी के संभावित उम्मीदवार के रूप में रविरंजन कुमार उर्फ छोटू मुखिया का नाम सुर्खियों में है। महज 28 साल की उम्र में क्षेत्र के सबसे युवा और सबसे अधिक वोटों से निर्वाचित मुखिया रह चुके छोटू की जनसंपर्क क्षमता और सोशल मीडिया पर सक्रियता उन्हें एक मजबूत विकल्प बना सकती है। उनके जरिए राजद भूमिहार, यादव और मुस्लिम वोट बैंक को साधने की कोशिश कर सकती है।
जदयू के परंपरागत वोट बैंक में सेंध की तैयारी
इधर जदयू के पांच बार के विधायक जितेंद्र कुमार अभी भी मजबूत स्थिति में माने जा रहे हैं। लेकिन इसी वर्ग से आने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह की बेटी लता सिंह जनसुराज के टिकट पर ताल ठोक रही हैं। इससे जदयू के पारंपरिक कुर्मी वोट बैंक में बंटवारा होना तय माना जा रहा है।
वोटर आंकड़ों में बदलाव के संकेत
अस्थावां में मतदाता संख्या 2020 के मुकाबले 2024 में बढ़कर 3.03 लाख हो चुकी है। इसमें अनुसूचित जाति की आबादी 25% से अधिक है और मुस्लिम वोटर करीब 5% हैं। पर राजनीतिक समीकरण मुख्य रूप से यादव, कुर्मी, भूमिहार और पासवान वोटरों के इर्द-गिर्द घूमता है। ऐसे में कोई भी बदलाव पूरे नतीजे को पलट सकता है।
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