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Up Kiran Digital Desk: भारत में जाति आधारित गणना हमेशा से एक संवेदनशील और राजनीतिक दृष्टिकोण से अहम मुद्दा रही है। बुधवार को कांग्रेस ने सरकार के फैसले का स्वागत किया कि आगामी जनगणना में जाति गणना को भी शामिल किया जाएगा। यह फैसला उन मांगों का परिणाम है जिन्हें बार-बार कांग्रेस सांसद राहुल गांधी उठाते रहे हैं। उनके लिए यह एक लंबी लड़ाई का फल है जो अब सियासी लड़ाई में एक नया मोड़ ले रहा है।
राहुल गांधी ने इस मुद्दे को लगातार लोकसभा और विधानसभा चुनावों में एक प्रमुख राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। उनका तर्क हमेशा यही रहा है कि जाति सर्वेक्षण से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि गरीब और पिछड़े वर्गों को उनका हक मिले और सामाजिक न्याय की दिशा में जरूरी कदम उठाए जाएं।
अब जब सरकार ने जाति जनगणना की घोषणा की है तो यह केवल एक सांस्कृतिक मुद्दा नहीं है बल्कि यह आगामी चुनावों के लिए अहम राजनीतिक समीकरणों का हिस्सा बन चुका है। आइए इस फैसले से जुड़ी चंद प्रमुख बातों को समझते हैं-
1. राहुल गांधी को वश में करना
बीजेपी ने जाति सर्वेक्षण पर सहमति जताकर राहुल गांधी को उनके सबसे शक्तिशाली राजनीतिक हथियार से वश में करने की कोशिश की है। कांग्रेस के लिए 2024 के लोकसभा चुनावों में जाति जनगणना और सामाजिक न्याय अहम मुद्दे होंगे और राहुल गांधी ने इस मुद्दे को अपने चुनावी अभियान का केंद्र बनाया था। इससे कांग्रेस की सीटों की संख्या 2019 के 52 से बढ़कर 99 तक पहुंचने में मदद मिली थी। बीजेपी अब इस मुद्दे पर कदम उठाकर कांग्रेस की ताकत को तोड़ने की कोशिश कर रही है।
2. राहुल गांधी के ओबीसी एजेंडे को खत्म करना
बीजेपी की योजना राहुल गांधी के ओबीसी-संचालित राजनीति को कमजोर करने की है। राहुल गांधी ने अपनी पार्टी के नेताओं से साफ कहा था कि पार्टी का ध्यान ऊंची जातियों और मुसलमानों पर था लेकिन ओबीसी वर्ग से उसका संपर्क कमजोर हो गया था। भाजपा अब यह संदेश देना चाहती है कि वह ओबीसी वर्ग के लिए भी खड़ी है और समाज के इस वर्ग के बीच अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।
3. बिहार में विपक्ष को पटरी से उतारना
जाति सर्वेक्षण का असर सबसे ज्यादा चुनावी राज्य बिहार में पड़ने की संभावना है। यहां जाति-आधारित राजनीति अहम भूमिका निभाती है। भाजपा सरकार के इस कदम को एक बड़ी रणनीति के रूप में देख रही है ताकि उसे यह संदेश दिया जा सके कि वह सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध है और गरीब और पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए काम कर रही है। इससे बीजेपी को बिहार में विपक्षी पार्टियों से मुकाबला करने में फायदा हो सकता है खासकर वहां की जाति-आधारित राजनीति को ध्यान में रखते हुए।
4. श्रेय लेने की होड़ में पेंच
अब जब सरकार ने जाति सर्वेक्षण की दिशा में कदम उठाया है तो कांग्रेस इसे अपनी 'जीत' मानने की तैयारी में है। राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी इस कदम को सामाजिक न्याय का एक बड़ा कदम मानते हुए इसे अपनी राजनीति में इस्तेमाल करने की योजना बना रहे हैं। हालांकि सरकार से इस फैसले का श्रेय लेना कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि जाति जनगणना का मुद्दा खुद भाजपा के लिए राजनीतिक फायदे का कारण बन सकता है।
5. कांग्रेस भाजपा पर दबाव बनाए रखेगी
कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि राहुल गांधी इस मुद्दे पर अपने अभियान को जारी रखेंगे। उनका अगला कदम होगा सरकार से जाति सर्वेक्षण के आंकड़े जारी करने की मांग करना। इसके बाद कांग्रेस की योजना उन आंकड़ों के आधार पर हाशिए पर पड़े वर्गों के लिए अनुकूलित नीतियां बनाने की हो सकती है। इस कदम से कांग्रेस भाजपा पर अतिरिक्त दबाव बना सकती है।
6. कांग्रेस ओबीसी के हित में काम कर रही है
कांग्रेस शासित राज्यों जैसे तेलंगाना और कर्नाटक में पार्टी ओबीसी के हितों को प्रमुखता से उठाती रही है। यहां कांग्रेस जातिगत सर्वेक्षण की गंभीरता को उजागर करने में लगी हुई है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ओबीसी वर्ग को उनके अधिकार मिलें। हालांकि भाजपा अब इस कदम का फायदा उठाने के लिए तैयार है क्योंकि उसे उम्मीद है कि जाति जनगणना के कदम से उसे ओबीसी समुदाय में समर्थन मिल सकता है।
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