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भारत की शिक्षा व्यवस्था में जातिवाद की गहरी जड़ें हैं। ये न केवल छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं, बल्कि उनकी शिक्षा के मौके भी सीमित करती हैं। इस मामले में राहुल गांधी का ‘रोहित वेमुला अधिनियम’ लागू करने का आग्रह एक अहम कदम हो सकता है।
रोहित वेमुला का केस
हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला ने 2016 में कथित जातिवाद के कारण आत्महत्या कर ली थी। ये घटना भारतीय समाज में जातिवाद के अत्यधिक संवेदनशील मुद्दे को उजागर करती है। इसके बाद से ही वंचित वर्गों के छात्रों की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करने की मांग तेज हो गई थी। राहुल गांधी ने इस संदर्भ में बार-बार अपनी आवाज उठाई है और अब 'रोहित वेमुला अधिनियम' का प्रस्ताव कांग्रेस की ओर से एक ठोस कदम है।
क्या है रोहित वेमुला अधिनियम
ये अधिनियम यदि लागू होता है तो जातिवाद के कारण पैदा होने वाली असमानताओं और भेदभाव को खत्म करने का प्रयास करेगा। इसके तहत वंचित वर्ग के छात्रों को शिक्षा संस्थानों में सम्मान और सुरक्षा प्रदान करने के लिए विशेष प्रावधान किए जाएंगे। इसके साथ ही जातिवाद से पैदा होने वाली दिक्कतों को गंभीरता से निपटने के लिए सख्त कानूनी दंड की व्यवस्था भी हो सकती है।
इस कानून से कितना बदलाव आएगा
हालांकि ये अधिनियम एक सकारात्मक कदम प्रतीत होता है, लेकिन सवाल ये है कि क्या यह केवल एक कानून बनकर रह जाएगा या वास्तव में समाज में जातिवाद की प्रथा को समाप्त करने में सफल होगा। भारत में जातिवाद एक सदियों पुरानी प्रथा है। इसे खत्म करना आसान नहीं है। हालांकि, यदि इस कानून का सही तरीके से पालन किया गया और शिक्षा संस्थानों में इसकी प्रभावी निगरानी की गई, तो ये कमजोर वर्गों के छात्रों के लिए एक बड़ा सहारा साबित हो सकता है।
'रोहित वेमुला अधिनियम' यदि लागू होता है, तो यह निश्चित रूप से जातिवाद के खिलाफ एक मजबूत कदम साबित हो सकता है