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बॉलीवुड में कई ऐसे निर्देशक आए जिन्होंने अपनी कहानियों, तकनीक और नजरिए से सिनेमा को बदल दिया। इन्हीं में से एक नाम है राम गोपाल वर्मा का। 90 के दशक में जब बॉलीवुड पर पारंपरिक रोमांस और मसाला फिल्मों का बोलबाला था, तब राम गोपाल वर्मा ने एक नई राह पकड़ी। अपने बेजोड़ स्टाइल और सिनेमा की नई भाषा के साथ उन्होंने दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ी। आज राम गोपाल वर्मा अपना 63वां जन्मदिन मना रहे हैं, और इस मौके पर उनका फिल्मी सफर एक बार फिर चर्चा में है।

शुरुआत विजयवाड़ा से, सपनों तक का सफर

राम गोपाल वर्मा का जन्म 7 अप्रैल 1962 को आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में हुआ था। शुरुआती दिनों में वह फिल्मों के पारंपरिक ढांचे से हटकर सोचते थे। उनकी पहली फिल्म 'शिवा' (1989), जिसमें नागार्जुन और अमला लीड रोल में थे, ने तेलुगू सिनेमा में हलचल मचा दी। कॉलेज राजनीति पर बनी इस एक्शन ड्रामा ने भारतीय सिनेमा के नैरेटिव को एक नया मोड़ दिया। वर्मा ने वर्ल्ड सिनेमा को गहराई से देखा और उसकी प्रेरणा को भारतीय सिनेमा में उतारने का साहस दिखाया।

बॉलीवुड में एंट्री और 'सत्या' से धमाका

राम गोपाल वर्मा ने हिंदी सिनेमा में 'शिवा' के रीमेक से कदम रखा और इसके बाद उन्होंने 'रात', 'रंगीला', 'सत्या', 'कंपनी', 'शूल', 'भूत', 'सरकार' जैसी फिल्मों से खुद को स्थापित किया। इन फिल्मों ने उन्हें न सिर्फ एक सफल निर्देशक बनाया बल्कि उन्हें एक नई सिनेमाई शैली का जनक भी कहा जाने लगा। खासकर ‘सत्या’ और ‘कंपनी’ जैसी गैंगस्टर फिल्मों ने बॉलीवुड में नॉयर शैली को पहचान दिलाई।

प्रेरणा बने कई निर्देशकों के लिए

राम गोपाल वर्मा ने न सिर्फ खुद बेहतरीन सिनेमा बनाया, बल्कि कई प्रतिभाओं को भी निखारा। अनुराग कश्यप जैसे निर्देशक उनके साथ काम करके ही बड़े हुए और आगे चलकर ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘गुलाल’, ‘अग्ली’ जैसी फिल्मों के जरिए नई पीढ़ी को सिनेमा का नया नजरिया दिखाया। अनुराग खुद मानते हैं कि उन्होंने वर्मा और हॉलीवुड निर्देशकों जैसे मार्टिन स्कॉर्सेसे व टारनटिनो से बहुत कुछ सीखा।

व्यक्तिगत जिंदगी और विवादों का साथ

राम गोपाल वर्मा का जीवन हमेशा खुला रहा। उन्होंने शराब और महिलाओं के प्रति अपने रुझान को कभी छिपाया नहीं। उर्मिला मातोंडकर, अंतरा माली और निशा कोठारी जैसी अभिनेत्रियों के साथ उनका जुड़ाव खबरों में रहा। हालांकि वह शादीशुदा हैं और उनके दो बच्चे भी हैं, लेकिन उनकी निजी जिंदगी हमेशा विवादों और चर्चाओं का हिस्सा बनी रही।

पतन की शुरुआत और विवादास्पद फिल्में

2000 के दशक के मध्य में राम गोपाल वर्मा का करियर ढलान पर आने लगा। 'जेम्स', 'राम गोपाल वर्मा की आग' जैसी फिल्में दर्शकों को पसंद नहीं आईं। खासकर 'शोले' के रीमेक 'आग' को लेकर उन्हें खूब आलोचना झेलनी पड़ी। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन को खलनायक गब्बर सिंह के रूप में दिखाया गया, जो दर्शकों को बिलकुल रास नहीं आया। इसके बाद फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हुई और वर्मा की साख को गहरा झटका लगा।

आज भी लोग करते हैं फिल्मों को याद

हालांकि समय बदला, लेकिन राम गोपाल वर्मा की कुछ फिल्में आज भी दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाए हुए हैं। 'सत्या', 'कंपनी', 'भूत', और 'सरकार' जैसी फिल्मों को आज भी सिनेमा प्रेमी क्लासिक मानते हैं। उनके जन्मदिन पर न केवल फिल्मी सितारों ने उन्हें बधाइयां दीं, बल्कि फैंस ने भी सोशल मीडिया पर उन्हें याद किया और उनकी बेहतरीन फिल्मों को फिर से साझा किया।

क्या वर्मा फिर दिखाएंगे कमाल?

फैन्स अब एक बार फिर उम्मीद कर रहे हैं कि राम गोपाल वर्मा अपनी किसी नई और दमदार कहानी के साथ वापसी करें। उनकी शैली और दृष्टिकोण आज भी नए फिल्मकारों के लिए प्रेरणा है।

63वें जन्मदिन पर राम गोपाल वर्मा का सफर यह बताता है कि सिनेमा केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण, एक सोच और समाज पर गहरा प्रभाव छोड़ने वाली कला है। अब देखना है कि क्या वह अपने अगले प्रोजेक्ट में एक बार फिर वही पुराना जादू दोहराते हैं या नहीं।