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Up Kiran, Digital Desk: ज़रूरी नहीं कि बड़े परदे पर हर बार कोई साधारण कहानी ही दिखे। हाल के वर्षों में भारतीय सिनेमा में पौराणिक और धार्मिक कथाओं को एक बार फिर से नई रौशनी में पेश किया जा रहा है। कभी ‘ब्रह्मास्त्र’ तो कभी ‘आदिपुरुष’ जैसे बड़े बजट के प्रोजेक्ट्स इस ट्रेंड का उदाहरण हैं। हालांकि, हर फिल्म को दर्शकों से वैसा ही प्यार नहीं मिलता, जैसा निर्माता उम्मीद करते हैं।

अब इसी कड़ी में रणबीर कपूर भगवान राम के अवतार में दर्शकों के सामने आने की तैयारी में हैं। उनकी बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘रामायण’ का पहला पोस्टर भी सामने आ चुका है और चर्चाओं के मुताबिक यह फिल्म दिवाली के आस-पास सिनेमाघरों में दस्तक दे सकती है। वहीं, मशहूर निर्देशक एस.एस. राजामौली भी महाभारत पर एक भव्य फिल्म बनाने का विचार कर रहे हैं।

लेकिन ऐसे में यह सवाल हर किसी के ज़हन में आता है कि क्या किसी धार्मिक कथा को बड़े परदे पर उतारने के लिए कोई विशेष कानूनी प्रक्रिया पूरी करनी पड़ती है? क्या सरकार या किसी धार्मिक संस्था से इजाज़त लेना अनिवार्य होता है?

धार्मिक कहानियों पर फिल्म बनाने की प्रक्रिया

दरअसल, भारत में धार्मिक विषय पर फिल्म बनाने के लिए अलग से कोई पूर्व अनुमति लेने का प्रावधान नहीं है। हां, अगर फिल्म की शूटिंग के दौरान किसी मंदिर, मस्जिद या किसी भी धार्मिक स्थल को लोकेशन के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है, तो उस स्थान के ट्रस्ट या देखरेख करने वाली संस्था से इजाजत लेना अनिवार्य है। इसी तरह, अगर फिल्म में किसी निजी संपत्ति को फिल्माया जाना है, तो मालिक की स्वीकृति लेना भी जरूरी है। इसके अलावा, किसी मौलिक साहित्य, कथा या गीत को इस्तेमाल करने की स्थिति में कॉपीराइट नियमों का पालन करना पड़ता है।

सबसे अहम बात यह है कि निर्माता-निर्देशक को इस बात का पूरा ध्यान रखना होता है कि फिल्म में किसी भी समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत न हों। कई बार विवाद तब खड़े होते हैं जब किसी दृश्य या संवाद को लेकर दर्शकों को आपत्ति हो जाती है। ऐसे में लेखन से लेकर फिल्मांकन तक, हर स्तर पर सतर्कता बेहद जरूरी मानी जाती है।

सेंसर बोर्ड की कसौटी पर खरा उतरना जरूरी

फिल्म पूरी हो जाने के बाद उसे दर्शकों के सामने लाने से पहले सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) से प्रमाणपत्र लेना होता है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला यह बोर्ड यह देखता है कि फिल्म में ऐसा कोई कंटेंट न हो जो अश्लील, आपत्तिजनक या समुदाय विशेष के खिलाफ हो। अगर बोर्ड को लगता है कि किसी सीन को हटाना जरूरी है तो वो उसे संपादित करवाने का निर्देश दे सकता है।

भारत में फिल्मों को चार मुख्य श्रेणियों में सर्टिफिकेट दिए जाते हैं— यू (सभी उम्र के लिए उपयुक्त), यू/ए (12 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए माता-पिता की निगरानी जरूरी), ए (केवल व्यस्क) और एस (विशेष वर्ग के दर्शकों के लिए)। बिना सेंसर सर्टिफिकेट के कोई भी फिल्म सार्वजनिक रूप से रिलीज़ नहीं की जा सकती।

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