Up Kiran, Digital Desk: मुंबई में हुए 26/11 के आतंकवादी हमले की याद फिर से राजनीतिक बयानबाजी की वजह बन गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम द्वारा हाल ही में दिए गए एक बयान ने सियासी हलकों में तूफान ला दिया है। चिदंबरम ने उस भयावह हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सीधे सैन्य कार्रवाई के समर्थन में अपनी राय जाहिर की, लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने कूटनीतिक रास्ता अपनाया था। उन्होंने कहा कि अमेरिका समेत अन्य शक्तिशाली देशों ने भारत को युद्ध से रोकने की कोशिश की। इस बयान के बाद कांग्रेस के अंदर ही विवाद उठ खड़ा हुआ है।
कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता राशिद अल्वी ने चिदंबरम की बातों पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या यह संकेत है कि यूपीए सरकार अमेरिका के दबाव में थी? अल्वी ने कहा कि यह बयान भाजपा के लिए एक बड़ा तोहफा साबित होगा और चिदंबरम को ऐसे वक्तव्य देने के बजाय इस्तीफा दे देना चाहिए था। उन्होंने कांग्रेस के भीतर इस तरह के बयानों को पार्टी कमजोर करने वाली हरकत बताया और कहा कि इस बयान से भाजपा को मजबूती मिलेगी, जो कांग्रेस के लिए सही नहीं है।
बीजेपी ने चिदंबरम के बयान को मौका बनाया, मनमोहन सिंह की सरकार पर उठाए सवाल
भाजपा नेताओं ने भी इस मौके को हाथ से जाने नहीं दिया। पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने चिदंबरम की टिप्पणियों को लेकर कहा कि इससे साफ होता है कि यूपीए सरकार कितनी कमजोर और दबाव में थी। उन्होंने बताया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने हर बार पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीति को प्राथमिकता दी, जबकि देश को सैन्य जवाब देना चाहिए था। प्रसाद ने राहुल गांधी से भी इस मामले पर प्रतिक्रिया देने को कहा। उन्होंने वर्तमान सरकार की उपलब्धियों की चर्चा करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की वजह से भारत मजबूत हुआ है और आतंकवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाता रहा है।
देश की सुरक्षा और सरकार की नीति: आम जनता के लिए क्या मायने रखता है यह विवाद?
यह बयानबाजी सिर्फ सियासत तक सीमित नहीं रह गई बल्कि आम लोगों के बीच सवाल खड़े कर रही है कि आखिर हमारी सुरक्षा और विदेश नीति के बीच संतुलन कैसे बनाए रखा जाना चाहिए। 26/11 जैसे भयानक हमले ने देश को सदमे में डाल दिया था और उस समय की सरकार की नीतियां जनता की नजरों में अब भी चर्चा का विषय हैं। कई लोग सोच रहे हैं कि क्या कूटनीतिक प्रयासों की कीमत हमारी सुरक्षा से ज्यादा होनी चाहिए? वहीं, कुछ का मानना है कि हर कदम सोच-समझकर उठाना जरूरी होता है ताकि आगे बढ़ने में किसी बड़े संकट का सामना न करना पड़े।
इस पूरे विवाद में जहां एक तरफ राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं, वहीं आम जनता इस बहस के पीछे की असलियत जानने को उत्सुक है। ऐसे में सवाल उठता है कि भविष्य में देश की सुरक्षा के लिए कौन सी रणनीति बेहतर साबित होगी और सत्ता में बैठे नेताओं को इस पर कैसे फैसला लेना चाहिए।
_112077432_100x75.png)
_734893250_100x75.png)
_1700702366_100x75.png)
_95632689_100x75.jpg)
_1185627078_100x75.jpg)