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Up Kiran, Digital Desk: मुंबई पर हुए 26/11 के आतंकवादी हमले की बात जब भी होती है, तो होटल ताज (Taj Hotel) पर हुए हमले को कोई भूल नहीं सकता। लेकिन इस भयानक त्रासदी में टाटा समूह (Tata Group) के तत्कालीन चेयरमैन रतन टाटा (Ratan Tata) का जिस तरह का शांत और दृढ़ नेतृत्व सामने आया, वह न सिर्फ़ एक मिसाल है, बल्कि उसने देश को हिम्मत दी थी। उनका वह 'मौन संकल्प' (Silent Resolve), जिसने संकट की घड़ी में इंसानियत और मूल्यों को सबसे ऊपर रखा।

रतन टाटा ने संभाला मोर्चा: 26 नवंबर, 2008 की उस रात, मुंबई हमले का सीधा निशाना ताज होटल भी था। हमला थमने के बाद, पूरी इंडस्ट्री और देश सदमे में था। उस मुश्किल घड़ी में रतन टाटा के दो प्रमुख काम हमेशा याद किए जाते हैं:

हर एक व्यक्ति का ध्यान रखना: टाटा समूह ने हमले के पीड़ितों की मदद करने में जरा भी देर नहीं की। सबसे बड़ी बात यह थी कि उन्होंने सिर्फ कर्मचारियों और उनके परिवारों को ही नहीं, बल्कि वहाँ काम कर रहे रेलवे कुली (Coolies), छोटे विक्रेता (Vendors), और उन सभी को, जो उस रात होटल के बाहर या आस-पास मौजूद थे और इस हमले का शिकार हुए, उन सबका ध्यान रखा।
उन्होंने पीड़ितों के लिए मुआवजे, उनके बच्चों की पढ़ाई, और उनके परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए तुरंत बड़े कदम उठाए। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि उनकी ज़िम्मेदारी सिर्फ़ शेयरधारकों (Shareholders) के प्रति नहीं, बल्कि समाज के हर एक वर्ग के प्रति है।

ताज की हिम्मत बढ़ाना: ताज होटल के हमले का जवाब किसी युद्ध से नहीं, बल्कि शांति और आत्मविश्वास से दिया गया। हमले के कुछ ही महीनों बाद जब रतन टाटा की पहल पर होटल ताज का मुख्य दरवाज़ा दोबारा खोला गया, तो उन्होंने कहा, "आप सभी आ सकते हैं। अब यह होटल ज़्यादा मज़बूत बन गया है।" उनके इन शब्दों में एक शांत गर्व और आतंकवाद के सामने न झुकने का अटल संकल्प था, जिसने पूरे देश को यह महसूस कराया कि हम हार नहीं मानेंगे।

दरअसल, 26/11 के बाद रतन टाटा की वो सहज उपस्थिति और उनका पीड़ितों के बीच व्यक्तिगत रूप से जाना यह दिखाता है कि सच्चा नेतृत्व वह है, जो मुनाफ़ा देखता है, पर संकट में सबसे पहले इंसान को देखता है। उनका वो दौर और उनके वो मूल्य आज भी भारतीय कॉर्पोरेट इतिहास के सबसे मानवीय सबक माने जाते हैं।