
Up Kiran, Digital Desk: हाल ही में सामने आए जेन स्ट्रीट घोटाला ने एक बार फिर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की पूर्व प्रमुख माधवी पुरी बुच के कार्यकाल के दौरान हुई कथित नियामक खामियों और ढीलेपन को केंद्र में ला दिया है। यह विवाद, हालांकि मुख्य रूप से अमेरिकी ब्रोकरेज फर्म जेन स्ट्रीट से जुड़ा है, लेकिन इसके निहितार्थ भारतीय पूंजी बाजारों में नियामक निगरानी पर भी सवाल उठाते हैं।
क्या है जेन स्ट्रीट विवाद?
जेन स्ट्रीट विवाद में अमेरिकी ब्रोकरेज फर्म पर आरोप है कि उसने उच्च-आवृत्ति ट्रेडिंग (High-Frequency Trading - HFT) और एल्गो ट्रेडिंग में कुछ ऐसे नियमों का उल्लंघन किया, जिनसे हितों का टकराव पैदा होता है। कंपनी, जो एक मार्केट मेकर भी है, पर आरोप है कि उसने ग्राहकों के लिए ट्रेड करते हुए अपने खुद के प्रॉप्राइटरी डेस्क के लिए भी लाभ कमाने की कोशिश की, जिससे पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठे।
माधवी पुरी बुच का कार्यकाल और उठे सवाल:
माधवी पुरी बुच सेबी प्रमुख बनने से पहले नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) में भी अहम पद पर रह चुकी हैं। उनके कार्यकाल के दौरान सेबी में HFT और एल्गो ट्रेडिंग से जुड़े कई मामले सुर्खियों में रहे थे। विशेषज्ञों का मानना है कि उस समय इन अति-आधुनिक ट्रेडिंग तकनीकों को नियंत्रित करने वाले नियमों में पर्याप्त स्पष्टता या सख्ती का अभाव था, या उन पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दिया गया।
पिछली नियामक व्यवस्था पर आरोप है कि उसने बाजार में संभावित हितों के टकराव, डेटा की अनुचित पहुंच और कुछ बाजार सहभागियों को अनुचित लाभ मिलने की संभावनाओं को पूरी तरह से संबोधित नहीं किया। जेन स्ट्रीट विवाद, जहां एक मार्केट मेकर पर खुद के लिए और ग्राहकों के लिए ट्रेड करते हुए हितों के टकराव का आरोप है, उस समय के नियामक माहौल की याद दिलाता है जहाँ ऐसी प्रणालियों की पर्याप्त जांच नहीं की गई।
यह घटना वर्तमान सेबी प्रमुख के लिए एक चुनौती है कि वे इन खामियों को दूर करें और सुनिश्चित करें कि भारतीय पूंजी बाजार निष्पक्ष, पारदर्शी और सभी निवेशकों के लिए समान अवसर प्रदान करने वाले बने रहें। यह प्रकरण बाजार की अखंडता को बनाए रखने और निवेशकों के विश्वास को कायम रखने के लिए मजबूत और चुस्त नियामक निगरानी की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
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