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Up kiran,Digital Desk : यह रहा संविधान निर्माण के दौरान हुई एक बेहद दिलचस्प और ऐतिहासिक घटना पर आधारित आर्टिकल। इसे कहानी के अंदाज़ में लिखा गया है ताकि इतिहास का यह पन्ना पाठकों को बोरिंग न लगे, बल्कि उन्हें सोचने पर मजबूर करे।

हमारा संविधान रातों-रात नहीं बना। इसे तैयार करने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का लंबा वक्त लगा था। इस दौरान संविधान सभा के हॉल में हर मुद्दे पर तीखी बहस हुई। लेकिन एक किस्सा ऐसा है जो आज के दौर में शायद आपको हैरान कर दे।

जब संविधान लिखा जा रहा था, तो पिछड़े वर्गों (SC/ST) के लिए आरक्षण पर सहमति बन गई थी। बात जब अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के लिए आरक्षण की आई, तो संविधान सभा में मौजूद कुछ प्रमुख मुस्लिम चेहरों ने ही इसका जोरदार विरोध किया। जी हाँ, उन्होंने आरक्षण लेने से साफ इनकार कर दिया था। इनमें प्रमुख नाम थे तजम्मुल हुसैन और बेगम ऐजाज रसूल का।

आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया? आइए, उनके तर्कों को आसान भाषा में समझते हैं।

तजम्मुल हुसैन बोले- "हम सबसे पहले भारतीय हैं"

उस समय के प्रमुख नेता तजम्मुल हुसैन ने संविधान सभा में जो भाषण दिया, वो रोंगटे खड़े कर देने वाला था। उन्होंने अपनी पहचान को लेकर एकदम साफ बात कही थी। हुसैन ने कहा था, "हम सबसे पहले भारतीय हैं और आखिरी सांस तक भारतीय ही रहेंगे। हम इस देश के सम्मान के लिए लड़ेंगे और जरूरत पड़ी तो मरेंगे भी।"

उनका मानना था कि 'एकता में बल है' और अगर आरक्षण मिला, तो हम बिखर जाएंगे। उन्होंने सीधे शब्दों में कहा था- "हमें आरक्षण नहीं चाहिए। इसका मतलब सिर्फ विभाजन (Division) है।"

हुसैन ने वहां मौजूद बहुसंख्यक समाज (हिंदुओं) की तरफ देखते हुए एक भावुक अपील भी की थी। उन्होंने पूछा था, "क्या आप हमें अपने पैरों पर खड़ा होने देंगे? क्या आप हमें राष्ट्र का अटूट हिस्सा मानेंगे और अपने दुख-सुख साझा करेंगे? अगर आपका जवाब हां है, तो भगवान के लिए मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षण से अपने हाथ दूर रखें।" उनका कहना था कि हमें बैसाखी नहीं, बल्कि बराबरी का दर्जा चाहिए।

"आरक्षण एक सुसाइडल वेपन है": बेगम ऐजाज रसूल

बेगम ऐजाज रसूल, जो संविधान सभा की एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्य थीं, की सोच भी बेहद क्रांतिकारी थी। उन्होंने आरक्षण को अल्पसंख्यकों के लिए ही खतरनाक बताया था।

संविधान सभा में अपनी बेबाक राय रखते हुए उन्होंने कहा था, "मेरी नजर में, आरक्षण एक आत्मघाती हथियार (Suicidal Weapon) है। यह हमेशा के लिए अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों से अलग-थलग कर देगा।"

बेगम रसूल का तर्क था कि अगर माइनॉरिटी अलग कोटे में रहेगी, तो उन्हें कभी बहुसंख्यकों का समर्थन नहीं मिल पाएगा और समाज में हमेशा अलगाववाद और सांप्रदायिकता (Communalism) का जहर घुला रहेगा। उन्होंने अपनी आत्मकथा में भी लिखा कि उन्होंने धर्म के आधार पर रिजर्वेशन का कड़ा विरोध किया था, क्योंकि वह देश को एक देखना चाहती थीं, बंटा हुआ नहीं।

ये दोनों नेता जानते थे कि देश का भला जुड़ने में है, अलग-थलग कोटे में रहने में नहीं। आज जब हम संविधान दिवस मनाते हैं या आरक्षण पर बात करते हैं, तो 1949 के दौर की यह सोच बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है।