
Up Kiran, Digital Desk: वैश्विक बाज़ारों, विशेषकर भारतीय इक्विटी बाज़ारों पर मध्य पूर्व में चल रहे भू-राजनीतिक तनाव का संभावित नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। विश्लेषकों और बाज़ार विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षेत्र में किसी भी तरह की अशांति या तेल उत्पादन से संबंधित फैसलों का सीधा असर दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ सकता है।
ओपेक प्लस और कच्चे तेल की कीमतें:
हाल ही में तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक प्लस (OPEC+) द्वारा तेल उत्पादन में कटौती के फ़ैसले से वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की क़ीमतों में तेज़ी आई है। यह सीधे तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है क्योंकि भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है। कच्चे तेल की ऊंची क़ीमतें देश में मुद्रास्फीति (महंगाई) को बढ़ा सकती हैं, जिससे आम आदमी की जेब पर बोझ बढ़ेगा।
महंगाई और RBI की चुनौती:
बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) पर ब्याज दरों को बढ़ाने का दबाव बढ़ सकता है। यदि आरबीआई ब्याज दरें बढ़ाता है, तो कर्ज़ महँगा होगा, जिससे औद्योगिक विकास और उपभोक्ता खर्च पर नकारात्मक असर पड़ सकता है, जिससे समग्र आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ सकती है।
विदेशी निवेश पर असर:
इसके अतिरिक्त, बढ़ते भू-राजनीतिक जोखिमों और उच्च मुद्रास्फीति के कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPIs) भारतीय बाज़ारों से पैसा निकालना शुरू कर सकते हैं। विदेशी पूंजी का बहिर्प्रवाह (outflow) इक्विटी बाज़ारों में और गिरावट ला सकता है और भारतीय रुपये पर भी दबाव डाल सकता है।
विश्लेषकों का मानना है कि यदि मध्य पूर्व में स्थिति और बिगड़ती है और तेल की कीमतें लगातार ऊंची बनी रहती हैं, तो इसका असर वैश्विक बाज़ारों के साथ-साथ भारतीय बाज़ारों पर भी देखने को मिलेगा। निवेशकों को आगामी समय में सावधानी बरतने और बाज़ार के उतार-चढ़ाव के लिए तैयार रहने की सलाह दी जाती है।
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