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Up Kiran, Digital Desk: आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एकजुटता की आवश्यकता पर भारत ने एक बार फिर जोर दिया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने वाशिंगटन डीसी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मौजूद दोहरे मानदंडों की आलोचना की, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि भारत की विदेश नीति इस मुद्दे पर हमेशा सैद्धांतिक और संतुलित रही है।
जयशंकर ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जब आतंकवाद की मार किसी और देश पर पड़ती है, तब भी भारत उस पर प्रतिक्रिया देता है, ठीक वैसे ही जैसे वह अपने देश में हुए आतंकी हमलों पर करता है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि कई बार पश्चिमी राष्ट्र तब तक खामोश रहते हैं, जब तक उन्हें खुद इस संकट का सामना न करना पड़े।
"वैश्विक समर्थन की कमी चिंता का विषय"
मंत्री ने यह भी रेखांकित किया कि आज के समय में विभिन्न देशों के बीच आतंकवाद के मुद्दे पर एक मजबूत साझेदारी विकसित नहीं हो पा रही है। उनके अनुसार, इस दिशा में वैश्विक सहमति बनाना आसान नहीं है, लेकिन यह प्रयास कूटनीति का अहम हिस्सा है। उन्होंने कहा, "जब तक हम अपने अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों को समझाने और सक्रिय समर्थन के लिए प्रेरित करने की कोशिश नहीं करेंगे, तब तक आतंकवाद से प्रभावी लड़ाई संभव नहीं होगी।"
जयशंकर ने इस बात पर भी बल दिया कि आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट वैश्विक प्रतिक्रिया समय की मांग है। उन्होंने कहा कि भारत का रुख हमेशा स्पष्ट रहा है, और वही नीति हम दूसरे देशों के संदर्भ में भी अपनाते हैं।
भारत-पाक युद्धविराम पर अमेरिकी भूमिका के दावों को बताया निराधार
प्रेस वार्ता के दौरान जब पत्रकारों ने भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष विराम में अमेरिका की भूमिका को लेकर सवाल किया, तो जयशंकर ने साफ शब्दों में इन दावों को खारिज कर दिया। उन्होंने बताया कि यह समझौता पूरी तरह से दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों — डीजीएमओ के बीच बातचीत के माध्यम से हुआ था, न कि किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा इस मुद्दे पर की गई मध्यस्थता की दावेदारी को विदेश मंत्री ने तथ्यों के साथ खंडन करते हुए कहा, "उस समय की घटनाओं का पूरा विवरण सार्वजनिक रिकॉर्ड में दर्ज है, और इसमें अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी।"
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