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Up Kiran Digital Desk: भारत-पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चली आ रही सिंधु जल संधि अब एक नई राजनीतिक और कूटनीतिक बहस का विषय बन गई है। बुधवार को राज्यसभा में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने पाकिस्तान के प्रति भारत के रुख को स्पष्ट करते हुए कहा कि जब तक इस्लामाबाद आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करता, तब तक इस ऐतिहासिक जल समझौते को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा।

'खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते'

इस बयान ने न सिर्फ राजनीतिक गलियारों में हलचल मचाई है, बल्कि देश के किसानों और आम नागरिकों के बीच भी एक नई चर्चा को जन्म दिया है। जयशंकर का यह बयान कि "खून और पानी साथ नहीं बह सकते", भारत की उस नीति को दर्शाता है जिसमें आतंकवाद को सहने की कोई जगह नहीं है। यह रुख ना केवल पाकिस्तान को सीधा संदेश है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की कूटनीतिक स्थिति को भी सुदृढ़ करता है।

क्या सिंधु संधि का ऐतिहासिक बोझ अब खत्म होगा?

जयशंकर ने यह भी कहा कि सिंधु जल संधि एक असामान्य और एकतरफा समझौता था, जिसमें भारत ने अपनी प्रमुख नदियों का नियंत्रण बिना पूर्ण अधिकार के छोड़ दिया था। उन्होंने इसे इतिहास की ऐसी भूल बताया जिसे अब सुधारा जा रहा है। इसके साथ ही उन्होंने 1960 में संसद में दिए गए पंडित जवाहरलाल नेहरू के बयान को उद्धृत करते हुए पूर्व की नीतियों की आलोचना की और वर्तमान सरकार की दिशा को उससे बिल्कुल भिन्न बताया।

पहलगाम हमले पर तीखा संदेश

अपने संबोधन में विदेश मंत्री ने हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले पर भी कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की हिंसक घटनाएं पूरी तरह अस्वीकार्य हैं और इसके लिए जवाबदेही तय होनी चाहिए। उनका इशारा सीधा पाकिस्तान की ओर था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत अब केवल कूटनीतिक वार्ता से नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई के संकेतों से भी अपना रुख साफ कर रहा है।

जनता के लिए क्या मायने रखती है यह नीति?

इस पूरे घटनाक्रम का सीधा असर आम भारतीय नागरिकों, खासकर उत्तर भारत के किसानों पर भी पड़ सकता है। यदि भारत सिंधु जल संधि से जुड़ी शर्तों में बदलाव करता है या इसे पूरी तरह स्थगित करता है, तो पंजाब, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में जल संसाधनों के प्रबंधन में बड़ा अंतर आ सकता है। वहीं, पाकिस्तान की कृषि और सिंचाई व्यवस्था पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा।

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