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Up Kiran, Digital Desk: ईद-उल-अज़हा इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार पैगम्बर इब्राहिम के बेटे की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है, मुस्लिम समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन मुसलमान अपने सामर्थ्य के अनुसार जानवरों की कुर्बानी देते हैं और उसके मांस का कुछ हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को दान करते हैं। मगर इस बार मोरक्को के मुसलमानों के लिए एक अप्रत्याशित खबर सामने आई है। मोरक्को के राजा मोहम्मद VI ने अपने नागरिकों से अपील की है कि इस साल ईद-उल-अज़हा के मौके पर वे भेड़ों की कुर्बानी न करें। यह फैसला देश में भेड़ों की संख्या में भारी गिरावट और पिछले सात सालों से चल रहे सूखे के कारण लिया गया है।

भेड़ों की संख्या में गिरावट

राजा मोहम्मद VI का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों से मोरक्को में गंभीर सूखा पड़ने के कारण भेड़ों की आबादी में कमी आई है। सूखे के कारण चरागाहों की स्थिति खराब हो गई है, जिससे भेड़ों की संख्या में गिरावट आई है। मोरक्को में ईद के अवसर पर भेड़ की कुर्बानी एक परंपरा रही है, मगर इस साल यह परंपरा असाधारण परिस्थितियों के चलते बाधित हो गई है। मोरक्को के लिए यह एक संवेदनशील मुद्दा बन चुका है, क्योंकि यहां की संस्कृति और धार्मिक परंपराओं के लिए कुर्बानी का विशेष महत्व है।

कुर्बानी की परंपरा और उसका महत्व

ईद-उल-अज़हा का त्योहार इस्लाम में एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है, जिसे पैगम्बर इब्राहिम की क़ुर्बानी की याद में मनाया जाता है। कहा जाता है कि अल्लाह के आदेश पर पैगम्बर इब्राहिम ने अपने बेटे इस्माइल की क़ुर्बानी दी थी, मगर अल्लाह ने उनके समर्पण और विश्वास को देखते हुए बेटे को बचा लिया। तब से यह परंपरा चली आ रही है, जिसमें मुसलमान अपने सामर्थ्य अनुसार जानवरों की कुर्बानी देते हैं। इस दिन का उद्देश्य न केवल अल्लाह की राह में बलिदान देना है, बल्कि यह गरीबों और जरूरतमंदों तक मांस पहुँचाने का भी एक तरीका है।

मोरक्को में ईद के मौके पर आमतौर पर भेड़, बकरी और गाय की कुर्बानी दी जाती है, मगर इस साल भेड़ों की कुर्बानी पर पाबंदी लगाई गई है। राजा के इस फैसले ने एक ओर जहां धार्मिक भावनाओं को प्रभावित किया है, वहीं दूसरी ओर यह एक पर्यावरणीय और कृषि संकट के रूप में देखा जा रहा है।

पर्यावरणीय संकट और कृषि संकट

मोरक्को में पिछले सात वर्षों से सूखा पड़ने के कारण कृषि और पशुपालन पर बुरा असर पड़ा है। सूखे के कारण जहां पानी की कमी हो गई है, वहीं पशुओं के लिए पर्याप्त चारा और घास भी उपलब्ध नहीं है। इससे भेड़ों की आबादी में कमी आई है, और सरकार को यह कदम उठाना पड़ा है। हालांकि इस फैसले से मुसलमानों की धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं, मगर यह निर्णय देश की पर्यावरणीय स्थिरता को बनाए रखने के लिए लिया गया है।
 

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