
Up Kiran, Digital Desk: गर्भावस्था (प्रेगनेंसी) के दौरान सुबह-सुबह जी मिचलाना या उल्टी होना एक आम बात मानी जाती है। लेकिन अगर यह समस्या बहुत गंभीर रूप ले ले, तो यह सिर्फ एक शारीरिक तकलीफ नहीं, बल्कि होने वाली मां के लिए एक बड़े मानसिक खतरे का संकेत हो सकती है।
एक नई और चौंकाने वाली स्टडी में यह बात सामने आई है कि प्रेगनेंसी के दौरान बहुत ज़्यादा उल्टी और मतली (Hyperemesis Gravidarum - HG) की समस्या झेलने वाली महिलाओं में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारियों का खतरा 50% से भी ज़्यादा बढ़ जाता है।
क्या है यह खतरनाक बीमारी (HG)?
हाइपरमेसिस ग्रेविडेरम (HG) मॉर्निंग सिकनेस का एक बहुत ही गंभीर रूप है, जो 1-2% गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करता है। इसमें महिलाओं को दिन में कई-कई बार उल्टियां होती हैं, वे कुछ भी खा-पी नहीं पातीं, जिससे उनका वजन तेजी से घटता है और शरीर में पानी की खतरनाक कमी (डिहाइड्रेशन) हो जाती है। कई बार तो हालत इतनी बिगड़ जाती है कि अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आ जाती है।
मानसिक सेहत पर कैसे करती है हमला?
स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट द्वारा 7 लाख से ज़्यादा महिलाओं पर की गई इस स्टडी के नतीजे आंखें खोल देने वाले हैं:
डिप्रेशन का खतरा: HG से पीड़ित महिलाओं में बच्चे के जन्म के बाद होने वाले डिप्रेशन (Post-natal depression) का खतरा 80% तक बढ़ जाता है।
आत्महत्या की कोशिश: इन महिलाओं में खुद को नुकसान पहुंचाने और यहां तक कि आत्महत्या की कोशिश करने के मामले भी ज़्यादा देखे गए।
गर्भपात के विचार: लगातार तकलीफ और दर्द के कारण कई महिलाओं के मन में अपना बच्चा गिराने (गर्भपात) तक के भयानक विचार आने लगते हैं।
यह बीमारी महिलाओं को शारीरिक रूप से तो तोड़ ही देती है, साथ ही उन्हें मानसिक रूप से भी अकेला और असहाय बना देती है, जिससे वे एंग्जायटी, डिप्रेशन और सदमे (PTSD) का शिकार हो जाती हैं।
क्यों होती है यह समस्या और क्या है इसका इलाज?
वैज्ञानिकों का मानना है कि इस गंभीर स्थिति के पीछे GDF15 नाम का एक हार्मोन जिम्मेदार हो सकता है। फिलहाल, इसका इलाज उल्टी रोकने वाली दवाओं से किया जाता है। लेकिन अच्छी खबर यह है कि अब एक ऐसी नई दवा पर काम चल रहा है जो सीधे GDF15 हार्मोन को ब्लॉक कर सकेगी, जिससे भविष्य में इस पीड़ादायक बीमारी का बेहतर इलाज संभव हो पाएगा।
यह स्टडी एक चेतावनी है कि गर्भावस्था में होने वाली गंभीर उल्टी को कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए। यह एक गंभीर मेडिकल इमरजेंसी है, जिसमें महिला को शारीरिक इलाज के साथ-साथ मजबूत मानसिक सहारे की भी सख्त ज़रूरत होती है।