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Up Kiran, Digital Desk: कुछ फिल्में सिर्फ फिल्में नहीं होतीं, एक एहसास बन जाती हैं। आप उन्हें कितनी भी बार देख लें, हर बार वो आपके दिल को उसी तरह छू जाती हैं। ऐसी ही एक फिल्म है 2007 में आई 'चक दे इंडिया', जो आज 17 साल बाद भी ओटीटी पर लोगों की पहली पसंद बनी हुई है।

यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि उम्मीद, देशभक्ति और महिला सशक्तिकरण की एक ऐसी कहानी है, जिसने सिनेमाघरों में बैठे हर इंसान को भावुक कर दिया था।

जब एक 'गद्दार' ने देश का सम्मान वापस दिलाया

फिल्म की कहानी हॉकी के पूर्व कप्तान कबीर खान (शाहरुख खान) की है। एक अहम मैच हारने के बाद, कबीर पर देश से गद्दारी का दाग लग जाता है और उसे गुमनामी की जिंदगी जीने पर मजबूर होना पड़ता है। सालों बाद, उसे भारतीय महिला हॉकी टीम का कोच बनने का मौका मिलता है - एक ऐसी टीम जिसे कोई गंभीरता से नहीं लेता।

कबीर खान न सिर्फ इन लड़कियों को एक टीम बनाता है, बल्कि उन्हें देश के लिए खेलना सिखाता है। वह अपने ऊपर लगे दाग को मिटाने और देश का सम्मान वापस पाने के लिए अपनी पूरी जान लगा देता है।

वो 70 मिनट और क्लाइमेक्स का जादू

इस फिल्म का हर सीन दमदार है, लेकिन इसका क्लाइमेक्स आज भी लोगों के रौंगटे खड़े कर देता है। फाइनल मैच के आखिरी पलों में जब टीम जीतती है और तिरंगे को देखकर कबीर खान की आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं, तो शायद ही कोई ऐसा दर्शक होगा जिसकी आंखें नम न हुई हों। वो एक ऐसा सीन था जिसने शाहरुख खान के किरदार के दर्द और जीत को हर भारतीय को महसूस करा दिया था।

आज भी IMDb पर इस फिल्म को 8.1 की शानदार रेटिंग मिली हुई है। अगर आपने आज तक यह masterpiece नहीं देखा है, या उस जादू को फिर से महसूस करना चाहते हैं, तो यह फिल्म नेटफ्लिक्स पर मौजूद है। यकीन मानिए, ये 2 घंटे आपकी जिंदगी के सबसे प्रेरणादायक घंटों में से एक हो सकते हैं।