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mahakumbh mela story: 28 जनवरी की वो काली रात महाकुंभ के इतिहास में एक दर्दनाक अध्याय बनकर दर्ज हो गई। रात्रि डेढ़ बजे श्रद्धालुओं की भीड़ में अचानक मची भगदड़ ने न जाने कितने परिवारों को छिन्न-भिन्न कर दिया। कोई अपनों से बिछड़ गया, तो किसी ने अपनी जान गंवा दी। घायलों की चीखें और गुमशुदा लोगों की तलाश में भटकते परिजनों का मंजर किसी के भी रोंगटे खड़े कर देने वाला था। लेकिन इसी अंधेरे में एक ऐसी कहानी भी सामने आई, जो इंसानियत और उम्मीद की मिसाल बन गई। ये कहानी है झांसी की वृद्ध महिला राजसू और उत्तर प्रदेश पुलिस के सब इंस्पेक्टर मोहम्मद शमीम खान की।

झांसी से अपने दस परिजनों के साथ महाकुंभ में शामिल होने आईं अधेड़ उम्र की राजसू उस रात की भयावहता को शायद ही कभी भूल पाएं। भीड़ में धक्का-मुक्की के बीच वो अपनों से अलग हो गईं। उनके पास न मोबाइल था, न कोई सामान और न ही किसी परिचित का नंबर याद था। घबराई और असहाय राजसू भटकते हुए किसी तरह प्रयागराज रेलवे स्टेशन तक पहुंच गईं। उनके सामने सिर्फ एक सवाल था- अब क्या? लेकिन कहते हैं न, मुश्किल वक्त में कोई न कोई फरिश्ता जरूर आता है। राजसू के लिए वो फरिश्ता बने सब इंस्पेक्टर मोहम्मद शमीम खान।

शमीम खान ने दिखाई इंसानियत

रेलवे स्टेशन के बाहर ड्यूटी पर तैनात शमीम खान ने जब राजसू को अकेले और परेशान देखा, तो उनकी सहायता के लिए आगे आए। राजसू के पास न तो कोई पहचान थी, न ही कोई संपर्क साधन। उन्होंने शमीम को सिर्फ अपने गांव और शहर का नाम बताया। लेकिन इतनी कम जानकारी के साथ भी शमीम ने हार नहीं मानी। उन्होंने एक ऐप की मदद से राजसू के गांव के प्रधान का संपर्क नंबर खोजा। फिर प्रधान से बात कर राजसू के परिवार का नंबर हासिल किया। कुछ ही घंटों में राजसू अपने परिजनों से संपर्क में आ गईं और आखिरकार अपनों से मिल गईं।

महिला ने कहा कि मोहम्मद शमीम खान मेरे लिए देवदूत से कम नहीं हैं। जिस तरह उन्होंने मेरी मदद की, वो ठीक वैसा ही था जैसे एक भाई अपनी बहन की रक्षा करता है।