धर्म डेस्क। सावन के पवित्र महीने को वर्षा की बूंदें शीतलता प्रदान कर रहीं हैं। श्रावण मास में कष्टों से मुक्ति के लिए सनातनी भगवान भोलेनाथ की पूजा करते हैं। वैसे तो भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय किए जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे उपाय हैं, जिन्हें करने से भगवान भोलेनाथ जल्द ही प्रसन्न होकर कृपा बरसाते हैं। शास्त्रों के अनुसार घोर संकट एवं गरीबी से मुक्ति के लिए जातक को सावन में शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इससे जातक के जीवन में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है।
शिव रक्षा स्तोत्र की रचना ऋषि यागवल्क्य ने की थी। शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से शिव शंभु प्रसन्न होकर जातक का कल्याण करते हैं। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति शिव रक्षा स्तोत्र का नियमित पाठ करता है, उसकी रक्षा महादेव करते हैं। शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ 1300 बार करने से व्यक्ति के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। उवह भयमुक्त हो जाता है।
ऋषि यागवल्क्य ने शिव रक्षा स्तोत्र में कुल 12 श्लोक की RACHNAA की है। इसका उच्चारण सही ढंग से करना चाहिए। सही उच्चारण के साथ विधिपूर्वक इसका पाठ करना चाहिए। शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद आसान पर बैठकर शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
शिव रक्षा स्तोत्र :
अस्य श्री शिवरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषिः
श्री सदाशिवो देवता, अनुष्टुप् छन्दः,
श्री सदाशिवप्रीत्यर्थं शिवरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः।।
चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम्।
अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम्।।
गौरीविनायकोपेतं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रकम्।
शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षां पठेन्नरः।।
गङ्गाधरः शिरः पातु फालं अर्धेन्दुशेखर:।
नयने मदनध्वंसी कर्णो सर्पविभूषणः।।
घ्राणं पातु पुरारातिः मुखं पातु जगत्पतिः।
जिह्वां वागीश्वरः पातु कन्धरां शितिकन्धरः।।
श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धरः।
भुजौ भूभारसंहर्ता करौ पातु पिनाकधृक्।।
हृदयं शङ्करः पातु जठरं गिरिजापतिः।
नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्राजिनाम्बरः।।
सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागतवत्सलः।
ऊरू महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः।।
जङ्घे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः।
चरणौ करुणासिन्धुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः।।
एतां शिवबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।
स भुक्त्वा सकलान्कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात्।।
ग्रहभूतपिशाचाद्याः त्रैलोक्ये विचरन्ति ये।
दूरादाशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात्।।
अभयङ्करनामेदं कवचं पार्वतीपतेः।
भक्त्या बिभर्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम्।।
इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्षां यथाऽदिशत्।
प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यः तथाऽलिखत्।।
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