_126709340.png)
Up Kiran, Digital Desk: बिहार विधानसभा इलेक्शन की औपचारिक घोषणा भले ही न हुई हो, मगर सियासी तपिश चरम पर है। पीएम मोदी के ताबड़तोड़ दौरे और अब प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप जायसवाल द्वारा नई संगठनात्मक टीम के ऐलान ने सियासी गलियारों में हलचल बढ़ा दी है। शनिवार को घोषित 35 सदस्यीय 'दिलीप टीम' को बीजेपी का एक बड़ा सियासी दांव माना जा रहा है, जिसमें पुराने और नए चेहरों का सामंजस्य बिठाने के साथ-साथ सवर्ण, ओबीसी और अतिपिछड़े वर्ग के बीच एक सूक्ष्म जातीय केमिस्ट्री बनाने की रणनीति साफ झलक रही है।
35 सदस्यीय टीम: अनुभव और नए जोश का संगम
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने अपनी टीम में 13 प्रदेश उपाध्यक्ष, 14 प्रदेश मंत्री, 5 प्रदेश महामंत्री के साथ-साथ एक प्रदेश कोषाध्यक्ष और दो सह-कोषाध्यक्ष की घोषणा की है। इस टीम की खास बात यह है कि इसमें 20 पदाधिकारियों को दोहराया गया है, यानी वे पिछली टीम में भी थे, जबकि 15 नए चेहरों को संगठन में मौका दिया गया है। आंकड़ों पर गौर करें तो दिलीप जायसवाल की टीम में लगभग 60 फीसदी पदाधिकारी वही हैं, जो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी की टीम का भी हिस्सा थे, जो संगठन में निरंतरता का संकेत है।
प्रमुख चेहरों पर एक नजर
प्रदेश उपाध्यक्ष (13): सिद्धार्थ शंभू, एमएलसी प्रमोद चंद्रवंशी, राजेंद्र सिंह, अमृता भूषण, डॉ। धर्मशिला गुप्ता, सरोज रंजन पटेल, धीरेंद्र कुमार सिंह, संजय खंडेलिया, संतोष पाठक, बेबी कुमारी, ललिता कुशवाहा, अशोक सहनी और अनामिका पासवान।
प्रदेश महामंत्री (5): शिवेश राम, राजेश वर्मा, राधामोहन शर्मा, लाजवंती झा और राकेश कुमार।
प्रदेश कोषाध्यक्ष: राकेश तिवारी
प्रदेश सह-कोषाध्यक्ष (2): आशुतोष शंकर सिंह और नितिन अभिषेक।
प्रदेश मंत्री (14): संतोष रंजन राय, रत्नेश कुमार कुशवाहा, संजय गुप्ता, त्रिविक्रम सिंह, धनराज शर्मा, नंदलाल चौहान, रीता शर्मा, भीम साहू, अजय यादव, अनिल ठाकुर, मुकेश शर्मा, मनोज सिंह, शोभा सिंह और पूनम रविदास।
जातीय समीकरण का सूक्ष्म गणित
इलेक्शन से पहले बीजेपी ने इस संगठनात्मक फेरबदल के जरिए जातीय समीकरणों को साधने की पुरजोर कोशिश की है। प्रदेश अध्यक्ष की कमान ओबीसी वर्ग से आने वाले दिलीप जायसवाल के हाथों में सौंपने के बावजूद, संगठन में सबसे ज्यादा जगह सवर्ण जातियों को मिली है। कुल 15 सवर्ण नेताओं को प्रदेश संगठन में शामिल किया गया है, जो बीजेपी के कोर वोट बैंक को बनाए रखने की रणनीति का हिस्सा है।
इसके अलावा, अतिपिछड़े वर्ग के 9 नेताओं और ओबीसी समुदाय के 7 नेताओं को भी प्रदेश संगठन में जगह दी गई है। दलित समुदाय से चार नेताओं को प्रतिनिधित्व मिला है, जबकि मुस्लिम समुदाय से किसी को भी जगह नहीं मिली है, जो बीजेपी की पारंपरिक रणनीति को दर्शाता है।
जातिगत प्रतिनिधित्व का विश्लेषण
प्रदेश उपाध्यक्ष: दो राजपूत, तीन वैश्य, दो दलित, ब्राह्मण-भूमिहार एक-एक, कहार-कुर्मी-कुशवाहा-सहनी समुदाय से एक-एक।
प्रदेश महामंत्री: एक दलित, एक कायस्थ, एक भूमिहार, एक ब्राह्मण और एक कुर्मी समुदाय से।
प्रदेश मंत्री: तीन भूमिहार, तीन राजपूत, एक यादव, एक नाई, एक कुशवाहा, एक नोनिया, एक बढ़ई, एक रविदासी (दलित) और एक साहू समुदाय से।
कोषाध्यक्ष: एक ब्राह्मण, एक कायस्थ, एक वैश्य समुदाय से।
अगड़े और पिछड़े की सियासी केमिस्ट्री पर बीजेपी का नया दांव
बीजेपी ने विधानसभा इलेक्शन से पहले एक बारीक सियासी संतुलन बनाने की कोशिश की है। दिलीप जायसवाल की टीम में सवर्ण और अतिपिछड़ी जातियों पर विशेष जोर दिया गया है। बिहार में राजपूत, ब्राह्मण, भूमिहार, कायस्थ और वैश्य बीजेपी का परंपरागत मतदाता वर्ग माना जाता है, जिन्हें संगठन में लगभग 40 फीसदी हिस्सेदारी देकर साधे रखने का प्रयास किया गया है।
वहीं, बिहार में हुए जाति सर्वे के अनुसार, 35 फीसदी आबादी अतिपिछड़े वर्ग की है, जिसे देखते हुए बीजेपी ने इस वर्ग को खास तवज्जो दी है। अतिपिछड़े समुदाय से आने वाले दिलीप जायसवाल ने ओबीसी कोटे को पिछली टीम के मुकाबले आधा कर दिया है, जबकि अतिपिछड़ा वर्ग (EBC) के कोटे को दोगुना कर दिया है। सवर्णों का दबदबा सम्राट चौधरी की टीम के साथ-साथ अब जायसवाल की टीम में भी बरकरार है।
--Advertisement--