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Up Kiran, Digital Desk: आगरा में हुए एक जघन्य हत्याकांड में मृतक रामवीर सिंह की पत्नी और उसके दो साथियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। यह मामला इसलिए बेहद खास बन गया क्योंकि इस पूरे प्रकरण में सबसे अहम गवाह रामवीर सिंह के अपने ही बच्चे बने। उनके बयानों ने कोर्ट में हत्यारों को सजा दिलाने में निर्णायक भूमिका निभाई। यह घटना तब की है जब रामवीर ने अपनी पत्नी के अवैध संबंध का पुरजोर विरोध किया था।

अदालत ने दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है और प्रत्येक पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है।

बच्चों ने खोला माँ का राज़

रामवीर सिंह जो पेशे से ऑटो ड्राइवर थे, उनकी हत्या का पर्दाफाश उनके बच्चों की बेबाक गवाही से हुआ। दंपति के सबसे बड़े बेटे ने अदालत में जो बताया वह चौंकाने वाला था। उसने कहा कि उसकी माँ के सुनील कुमार नाम के शख्स के साथ करीब दो साल से संबंध थे।

पंद्रह साल के इस किशोर ने मजिस्ट्रेट के सामने बताया, "सुनील जब कभी हमारे घर आता था तो हम बच्चों को पीटता था। मैंने उसे और धर्मवीर को कई बार घर के आस पास देखा था। मैंने अपने पिताजी को भी इस बारे में चेताया था। जब मेरे पिताजी बाहर जाते थे तो सुनील चुपके से घर आता और माँ के साथ कमरे में रहता।" बड़े भाई के इस बयान का समर्थन उसके दो छोटे भाइयों ने भी किया, जिनकी उम्र उस समय तेरह और आठ साल थी।

लापता रामवीर और फिर कुएं में मिली लाश

अतिरिक्त जिला शासकीय अधिवक्ता प्रदीप शर्मा ने बताया कि 14 फरवरी 2019 को रामवीर सिंह अचानक गायब हो गए। उनके चाचा टीकाराम ने हर जगह उनकी तलाश की लेकिन जब कोई सफलता नहीं मिली तो उन्होंने पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई।

सिर्फ दो दिन बाद ही, रामवीर सिंह की लाश गांव के एक कुएं से बरामद हुई। इस हत्या के आरोप में पुलिस ने रामवीर की पत्नी कुसुमा देवी, उसके प्रेमी सुनील कुमार और सुनील के दोस्त धर्मवीर सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। सुनील और धर्मवीर भी ऑटो ड्राइवर का काम करते थे।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने बयाँ की हैवानियत

रामवीर सिंह के शव के पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने हत्या की क्रूरता को सबके सामने ला दिया। रिपोर्ट के अनुसार उनके शरीर पर बारह चोटों के निशान थे। मौत का कारण घातक चोटों से हुआ 'कोमा' बताया गया।

पुलिस ने वह लंबी लकड़ी भी बरामद कर ली जिससे रामवीर को बुरी तरह से पीटा गया था। साथ ही, मौके से एक जला हुआ मोबाइल फोन भी मिला। पुलिस ने जल्द ही मुख्य आरोपी कुसुमा को 17 फरवरी को और उसके बाद 19 फरवरी को अन्य दो आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। इस मामले में उसी साल 13 मई को कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई थी।

न्याय की जीत

ट्रायल के दौरान आरोपियों ने अपनी संलिप्तता से इनकार किया। उन्होंने बचने के लिए यह तर्क देने की कोशिश की कि रामवीर के स्थानीय गुंडों से संबंध थे और इसी वजह से उसकी हत्या हुई।