
Up Kiran, Digital Desk: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में राजस्थान हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक जोड़े को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया गया था। यह मामला एक सिविल डिस्प्यूट (civil dispute) से जुड़ा था, जिसे आपराधिक मामला (criminal case) बना दिया गया था। जस्टिस जे.बी. परदीवाला (J.B. Pardiwala) की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले में शांत रुख अपनाते हुए जोड़े को अग्रिम जमानत प्रदान की।
यह घटनाक्रम तब हुआ जब जस्टिस परदीवाला ने हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) के एक न्यायाधीश की आलोचना की थी, जिन्होंने एक सिविल डिस्प्यूट मामले में आपराधिक कार्यवाही की अनुमति दी थी। हालांकि, भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) बी.आर. गवाई (B.R. Gavai) के हस्तक्षेप के बाद, जस्टिस परदीवाला ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश के खिलाफ अपनी टिप्पणियों को हटा दिया था।
राजस्थान हाई कोर्ट का आदेश और सुप्रीम कोर्ट का रुख
13 अगस्त को, जस्टिस परदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत से इनकार करने के समान मामले की सुनवाई की। पीठ ने कहा कि समस्या सुस्थापित कानून (well-settled law) का पालन न करने से उत्पन्न हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि बिक्री लेनदेन (sale transaction) होने के बाद, आपराधिक विश्वासघात (criminal breach of trust) का दावा नहीं किया जा सकता।
राजस्थान हाई कोर्ट ने अग्रिम जमानत से इनकार करते हुए चिंता व्यक्त की थी कि यदि जोड़े को सुरक्षा दी गई तो बकाया राशि की वसूली संभव नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को त्रुटिपूर्ण (flawed) पाया। पीठ ने कहा कि राज्य पुलिस हस्तक्षेप पर निर्भर था, और हाई कोर्ट ने इस तर्क को बिना किसी सवाल के स्वीकार कर लिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे आम तौर पर हाई कोर्ट द्वारा जमानत से इनकार करने वाले आदेशों को रद्द नहीं करते हैं, लेकिन इस मामले में हस्तक्षेप करना आवश्यक था क्योंकि कानूनी सिद्धांतों का गलत अनुप्रयोग (misapplication of legal principles) हुआ था।
जस्टिस परदीवाला की टिप्पणी और CJI का हस्तक्षेप
इस मामले की सुनवाई के दौरान, जस्टिस परदीवाला ने टिप्पणी की, "आज हम अपना आपा नहीं खोएंगे। आज, हम खुद को बहुत नियंत्रित कर रहे हैं।" उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि यदि हाई कोर्ट उचित कानून का पालन करते तो इस तरह के अनावश्यक मुकदमे और याचिकाकर्ताओं को होने वाली परेशानी से बचा जा सकता था।
यह घटनाक्रम इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश के संबंध में जस्टिस परदीवाला की हालिया आलोचना के बाद आया था। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवाई के अनुरोध पर, जस्टिस परदीवाला ने अपनी टिप्पणियों को वापस ले लिया था और स्पष्ट किया था कि उनका इरादा न्यायाधीश को शर्मिंदा करने का नहीं था। यह दर्शाता है कि न्यायपालिका के भीतर संस्थागत सीमाओं का सम्मान किया जाता है।
महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत: सिविल डिस्प्यूट में आपराधिक कार्यवाही का दुरुपयोग
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने सिविल विवादों (civil disputes) को आपराधिक रंग (criminal colour) देने की प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला है। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि पुलिस मशीनरी का उपयोग केवल पैसे की वसूली के लिए नहीं किया जाना चाहिए। यह निर्णय स्थापित कानूनी मानदंडों का पालन करने के महत्व को रेखांकित करता है, खासकर जब नागरिक लेनदेन में आपराधिक आरोप लगाए जाते हैं।
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