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Up Kiran, Digital Desk: तेलंगाना का शिक्षा क्षेत्र, खासकर राज्य के सरकारी विश्वविद्यालय, इन दिनों एक के बाद एक मुश्किलों से जूझ रहे हैं। ऐसा लगता है मानो एक संकट खत्म नहीं होता कि दूसरा दस्तक दे देता है। इस लगातार परेशानी के कारण इन महत्वपूर्ण शिक्षण संस्थानों के कामकाज और गुणवत्ता पर गहरा असर पड़ रहा है।

यह 'एक संकट से दूसरे संकट में फंसने' की स्थिति कई तरह की हो सकती है - जैसे फंडिंग की कमी, शिक्षकों और स्टाफ की भर्ती में देरी या समस्याएं, बुनियादी ढांचे (infrastructure) का पुराना होना, प्रशासनिक चुनौतियां या शैक्षणिक प्रक्रियाओं से जुड़ी दिक्कतें। जब विश्वविद्यालय लगातार इन अंदरूनी या बाहरी दबावों का सामना करते हैं, तो वे सुचारू रूप से चल नहीं पाते।

इसका सीधा खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ता है। उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है, उन्हें मिलने वाली सुविधाएं अधूरी रहती हैं और कुल मिलाकर शैक्षिक अनुभव पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। साथ ही, स्टाफ और शिक्षकों का मनोबल भी गिरता है।

सरकारी विश्वविद्यालय समाज के एक बड़े वर्ग के लिए उच्च शिक्षा का मुख्य जरिया होते हैं। उनकी यह अस्थिर स्थिति पूरे राज्य के शैक्षिक परिदृश्य के लिए चिंता का विषय है। यह ज़रूरी है कि इन संस्थानों की जड़ों को मजबूत करने और उन्हें इन लगातार आने वाले संकटों से निकालने के लिए ठोस और स्थायी समाधान तलाशे जाएं।

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