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Up Kiran, Digital Desk: तेलंगाना में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई एक धीमे और दर्दनाक मजाक में बदलती जा रही है। एक तरफ एंटी-करप्शन ब्यूरो (ACB) घूसखोर अधिकारियों को पकड़ने के लिए जाल बिछाती है, तो दूसरी तरफ सालों-साल लटकते अदालती मामले, लचर कानूनी प्रक्रिया और विभागीय उदासीनता इन भ्रष्ट 'बाबुओ' को फिर से मलाईदार पदों पर लौटने और पूरी पेंशन के साथ सेवानिवृत्त होने का मौका दे रही है।

इस 'लूट और छूट' के खतरनाक खेल पर चिंता जताते हुए, फोरम फॉर गुड गवर्नेंस (FGG) ने मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी से तत्काल हस्तक्षेप करने और ACB मामलों के निपटारे में तेजी लाने के लिए एक मजबूत तंत्र स्थापित करने की अपील की है।

आंकड़े जो भ्रष्टाचार की डरावनी कहानी कहते हैं

FGG द्वारा उजागर किए गए तथ्य चौंकाने वाले हैं और यह दिखाते हैं कि कैसे सिस्टम भ्रष्टाचारियों के सामने घुटने टेक रहा है:

दशकों तक लटकते मामले: कई ACB मामले अदालतों में 5 से 10 साल तक लंबित रहते हैं। इस दौरान, आरोपी अधिकारी न केवल सेवा में बने रहते हैं, बल्कि प्रमोशन भी पाते रहते हैं।

नाममात्र की सजा: 2024 में ACB मामलों में सजा की दर महज 42% रही है। इसका मतलब है कि आधे से ज्यादा आरोपी कानूनी दांवपेंच और देरी का फायदा उठाकर बरी हो जाते हैं।

सरकार की सुस्ती: कई मामलों में, संबंधित सरकारी विभागों को अभियोजन (prosecution) की मंजूरी देने में ही महीनों-सालों लग जाते हैं, जिससे केस शुरू होने से पहले ही कमजोर हो जाता है।

बरी होने के बाद भी 'खेल': अगर कोई अधिकारी अदालत से बरी हो भी जाता है, तो उसके खिलाफ विभागीय जांच में भी इतनी देरी की जाती है कि वह फुल रिटायरमेंट बेनिफिट्स के साथ सेवानिवृत्त हो जाता है।

FGG के सचिव एम. पद्मनाभ रेड्डी ने कहा, "जब किसी मामले का निपटारा 10 साल में होता है, तो ज्यादातर गवाह और सबूत खत्म हो जाते हैं, जिसका सीधा फायदा आरोपी को मिलता है। यह व्यवस्था ईमानदार अधिकारियों को हतोत्साहित करती है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है।"

FGG की सरकार से 5 प्रमुख मांगें

भ्रष्टाचार पर इस धीमी गति को समाप्त करने के लिए, FGG ने सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने का सुझाव दिया है:

जजों की नियुक्ति: विशेष ACB अदालतों में खाली पड़े जजों के पदों को तुरंत भरा जाए।

फास्ट-ट्रैक कोर्ट: मामलों का तेजी से निपटारा करने के लिए फास्ट-ट्रैक अदालतों का गठन किया जाए।

नियमित समीक्षा: मुख्यमंत्री या मुख्य सचिव को ACB के डायरेक्टर जनरल के साथ मासिक समीक्षा बैठक करनी चाहिए।

समय-सीमा तय हो: विभागीय जांच को 6 महीने और अभियोजन की मंजूरी को 3 महीने की समय-सीमा में पूरा किया जाए।

प्रमोशन पर रोक: जिन अधिकारियों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल हो गया है, उन्हें प्रमोशन न दिया जाए।

यह देखना महत्वपूर्ण है कि क्या रेवंत रेड्डी सरकार, जो 'प्रजा पालन' का वादा कर सत्ता में आई है, भ्रष्टाचार के इस नासूर को खत्म करने के लिए इन मांगों पर कोई ठोस कार्रवाई करती है या नहीं।