Up Kiran, Digital Desk: देशभर में आवारा कुत्तों के बढ़ते हमलों और उससे पैदा हुए डर के माहौल के बीच अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिक गई हैं. पिछले कुछ समय से चल रही इस गंभीर मामले की सुनवाई के बाद अब अदालत 7 नवंबर को अपना अहम आदेश सुनाएगी यह फैसला इस उलझे हुए सवाल का जवाब दे सकता है कि इंसानों की सुरक्षा और जानवरों के अधिकारों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए.
यह मामला तब और गंभीर हो गया जब देश के अलग-अलग हिस्सों, खासकर दिल्ली-एनसीआर में बच्चों पर कुत्तों के हमलों और रेबीज से मौत की खबरें लगातार सामने आने लगीं.इसी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2022 में खुद इस मामले का संज्ञान लिया और सुनवाई शुरू की.
एनिमल वेलफेयर बोर्ड भी बना मामले में पक्षकार
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (Animal Welfare Board of India) को भी इस मामले में एक पक्षकार बनाने का निर्देश दिया है.[1][2][4] इसका मतलब यह है कि अब इस मामले में कोई भी फैसला लेने से पहले बोर्ड की राय और विशेषज्ञता को भी ध्यान में रखा जाएगा. बोर्ड की जिम्मेदारी पशु कल्याण कानूनों को लागू करवाना और जानवरों के प्रति क्रूरता को रोकना है.
क्या है पूरा विवाद?
यह पूरा मामला दो धड़ों में बंटा हुआ है.
सरकारों की ढिलाई पर कोर्ट ने जताई थी नाराजगी
पिछली सुनवाइयों में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों के ढीले रवैये पर सख्त नाराजगी जताई थी. अदालत ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को यह बताने के लिए हलफनामा दायर करने का आदेश दिया था कि उन्होंने आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए बने ABC नियमों का पालन करने के लिए क्या-क्या कदम उठाए हैं. ज्यादातर राज्यों ने अब अपने जवाब दाखिल कर दिए हैं.
अब 7 नवंबर को आने वाला फैसला यह तय करेगा कि आवारा कुत्तों के प्रबंधन को लेकर देश में क्या कोई एक समान और स्पष्ट नीति बनेगी. अदालत के सामने सबसे बड़ी चुनौती ऐसा रास्ता निकालने की है, जिससे सड़कों पर इंसान बिना डरे चल सकें और बेजुबान जानवरों के साथ भी कोई अन्याय न हो.
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